पृष्ठ:आकाश -दीप -जयशंकर प्रसाद .pdf/१३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
चूूड़ीवाली
 

पथिक एक बार ही उठकर बैठ गया और आँख गड़ाकर अँधेरे में देखने लगा। सहसा बोल उठा---'चूड़ीवाली?'

"कौन, सरकार?"

"हाँ, तुमने शोक हर लिया। मेरे अपराधजनक तामस त्याग में पुण्य का भी भाग था, यह मैं नहीं जानता था।"

"सरदार! मैंने गृहस्थ-कुलवधू होने के लिये कठोर तपस्या की है। इन चार बरसों में मुझे विश्वास हो गया है कि कुलवधू होने में जो महत्व है वह सेवा का है, न कि विलास का।"

"सेवा ही नहीं चूड़ीवाली! उसमें विलास का अनन्त यौवन है, क्योंकि केवल स्त्री पुरुष के शारीरिक बन्धन में वह पर्यवसित नहीं हैं। वाह्य साधनों के विकृत हो जाने तक ही उसकी सीमा नहीं, गार्हस्थ-जीवन उसके लिये प्रचुर उपकरण प्रस्तुत करता है इसलिये वह प्रेय भी है और श्रेय भी है। मुझे विश्वास है कि तुम अब सफल हो जाओगी!"

"मेरी सफलता आपकी कृपा पर है। विश्वास है कि अब इतने निर्दय न होंगे।" कहते-कहते चूड़ीवाली ने सरकार के पैर पकड़ लिये।

सरकार ने उसके हाथ पकड़ लिये।


_________

--- १३५ ---