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'प्रसाद' जी की सर्वतोमुखी प्रतिभा ने जिन अख्यायिकाओं की उद्भावना की हैं, उनमें जो रस और मर्म है, वह केवल बहिर्जगत से ही सम्बद्ध नहीं अपितु हृदय की उन छिपी हुई भावनाओं पर प्रकाश डालता है जिनका बोध आपको भी यदाकदा हुआ करता है। ऐसी रहस्यमयी वृत्तियों को प्रस्फुटित करना, उन पर प्रकाश डालना ही छायावाद का काम है और इन आख्यायिकाओं में जयशङ्करजी अपने इस उद्देश में कितने सफल हुए हैं सो पाठक स्वयं ही इन अख्यायिका से अनुभव करेंगे।

१९२९
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