वे जो मुझे वहाँ भेज रहे हैं, उन्हें भी शीघ्र ही मेरा अनुकरण करना होगा। मैं निर्दोष जा रही हूँ, उनके सिर पर रक्त का अपराध होगा और तुम जो आज हम लोगों के ऊपर हँस रही हो, आज से भी अधिक उन लोगों के दंड पर हँसोगी।"
मादाम रोलॉ का कथन अक्षरसः सत्य सिद्ध हुआ।
मादाम रोलॉ की गाड़ी में एक वृद्ध मनुष्य भी था। वह मार्ग भर रोता रहा, परन्तु रोलॉ ने उसको सान्त्वना देकर धीरज बंधाया। बध-स्थान पर सबसे पहले मादाम रोलॉ को ही फाँसी लगनी थी, पर उसने बधिक से प्रार्थना की कि-"पहले उस वृद्ध को फाँसी पर चढ़ाओ, वह मेरी मृत्यु न देख सकेगा, उसका हृदय फट जायेगा। मैं तो पीछे भी मर लूंगी।"
बधिक ने उसकी बात मान ली। हृदय कड़ा करके मादाम रोलॉ ने वृद्ध का सिर कटते देखा। वृद्ध के मरने के बाद वह अपने स्थान से हटी। पास ही में स्वतन्त्रता देवी की मूर्ति रखी थी। उसके सामने नत-मस्तक होकर मादाम रोलॉ ने दीर्घ निश्वास भरकर कहा-"स्वाधीनते! स्वतन्त्रते। तुम्हारे नाम पर मनुष्यों ने कितने अपराध किये हैं।"
इतना कहकर वह गिलेटिन पर जाकर खड़ी हो गई और अपना गला छुरी के नीचे रख दिया। क्षण-मात्र में उसका सिर धड़ से अलग हो गया। यह ८ नवम्बर, सन् १७६३ की घटना है।
रोलॉ के पति ने जब अपनी स्त्री की मृत्यु का समाचार सुना तो उसके लिए एक क्षण भी इस संसार में रहना कठिन हो गया । वह अपने स्थान से भाग निकला और आत्महत्या कर ली।
बारह
रूहेलखंड युद्ध के अत्याचारों की कहानी इंगलैण्ड में विभिन्न रूप धारण करके पहुँची। गवर्नर के कार्य को दोषपूर्ण कहा गया। अन्त में १७७३ में लार्डनार्थ के द्वारा पालियामेंट में एक बिल रेग्युलेटिंग एक्ट' पास हुआ, जिसके द्वारा 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' के हाथ से भारतीय शासन
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