लगा। जनरल स्मिथ हार-पर-हार खाकर पीछे हटता गया। तब उसको सहायता के लिये कर्नल कुड एक नई सेना लेकर बंगाल से चला।
इस बीच में अंग्रेजों ने पादरियों द्वारा हैदर के यूरोपियन अफसरों को फोड़ने की पूरी कोशिश की और सफलता भी प्राप्त की। पर अन्त में हैदर ने अपना तमाम इलाका अंग्रेजों से छीन लिया। उधर अंग्रेजों ने बंगलौर को हथिया लिया था-उसे टीपू ने छीना। इस युद्ध में अनेक अंग्रेज अफसर सेनापति सहित गिरफ्तार किये गये। अन्त में हैदर वीरपुत्र सहित सेना को खदेड़ते हुए मद्रास तक पहुँचा। अंग्रेजों ने कप्तान ब्रुक को सुलह की बातचीत करने भेजा। हैदर ने जवाब दिया- "मैं मद्रास के फाटक पर आ रहा हूँ। गवर्नर और उसकी कौंसिल को जो कुछ कहना होगा-वहीं आकर सुनूंगा।"
वह साढ़े तीन दिन के अन्दर १३० मील का फासला तय करके अचानक मद्रास जा धमका और किले से दस मील दूर छावनी डाल दी। अंग्रेज काँप उठे। हैदर और अंग्रेजी सेना के बीच में 'सेण्ट टॉमस' की पहाड़ी थी। अंग्रेजों ने देखा कि यदि हैदर इसपर अधिकार कर लेगा-तो खैर नहीं। वे जल्दी-जल्दी वहाँ तोपें जमा रहे थे। पर हैदर एक चक्कर काटकर मद्रास के किले के दूसरे फाटक पर आ पहुँचा। अंग्रेजी सेना किले के दूसरी ओर फसील से दो-तीन मील के फासले पर थी। अंग्रेजों के भय का ठिकाना न था। पर हैदर ने पूर्व वचन के अनुसार गवर्नर को कहला भेजा—'कहो, क्या कहना चाहते हो?"-
गवर्नर ने तुरन्त डुग्रे और वैशियर को सुलह की बातचीत करने को भविष्य के लिये गवर्नर नियुक्त हो चुका था। वैशियर उस समय के गवर्नर का सगा भाई था।
अन्त में सन्धि हुई। उसमें कम्पनी का किसी प्रकार का राजनैतिक अधिकार नहीं माना गया। सन्धि-पत्र हैदर ने जैसा चाहा, वैसा ही इंगलिस्तान के बादशाह के नाम से लिखा गया। इस सन्धि के आधार पर हैदरअली और इंगलैण्ड के राजा में मित्रता कायम रही। दोनों ने अपने प्रान्त वापस लिये और हैदर ने एक मोटी रकम युद्ध के खर्च के लिए ली। दूसरी सन्धि के आधार पर अरकाट का नवाब मैसूर का सूबेदार समझा गया और भेजा।
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