का खर्च ही २-३ हजार रुपये रोजाना का था। सैकड़ों बावर्ची थे। शाहजादे वजीरअली की शादी में ३० लाख रुपये खर्च किये थे। वह सिर्फ दाता और उदार ही नहीं, एक योग्य शासक और गुणग्राही भी थे। मीर, सौदा और हसरत आदि उर्दू के नामी कवि थे जो साल में सिर्फ एक बार दरबार में हाजिर होकर हजारों रुपये पाते थे। संगीत और काव्य के ऐसे रसिक थे कि एक-एक पद पर हजारों रुपये बरसाये जाते थे।
वारेन हेस्टिग्स को रुपये की बड़ी जरूरत थी। अंग्रेज कम्पनी ने नवाब से कई बड़ी रकमें बार-बार तलब की थीं। विवश हो नवाब ने चुनार के किले में हेस्टिग्स से मुलाकात की और बताया कि केवल सेना की मद्द में ही मुझे एक बड़ी रकम देनी पड़ती है।
अन्त में हेस्टिग्स ने यह निश्चय किया कि चूंकि स्वर्गीय नवाब शुजाउद्दौला मृत्यु के समय में अपनी माँ और विधवा बेगम को बड़े-बड़े खजाने दे गया है, और फैजाबाद के महल भी उन्हीं के नाम कर गया है, तथा ये बेगमें अपने असंख्य सम्बन्धियों, बाँदियों और गुलामों के साथ वहीं रहती थीं-अतः उनसे यह रुपया ले लिया जाय।
आसफउद्दौला यह शर्त सुनकर बहुत लज्जित हुआ, पर लाचार हो उसे सहमत होना पड़ा, और इसका प्रबन्ध अंग्रेज-अधिकारी स्वयं कर लेंगे, यह भी निश्चय हो गया।
मृत नवाब शुजाउद्दौला अपनी इन बेगमों को अंग्रेजों की संरक्षकता में छोड़ गये थे। परन्तु उस मनुष्यता को भुलाकर और उनका रुपया हड़पने का संकल्प करके इन विधवा बेगमों पर काशी के राजा चेतसिंह के साथ विद्रोह में सम्मिलित होने का अभियोग लगाया गया, और सर इलाइजाह इम्पे कहारों की डाक बैठाकर इस काम के लिए कलकत्ते से तेजी के साथ रवाना हुआ। लखनऊ पहुँचकर उसने गवाहों के हलफनामे लिये और बेगमों को विद्रोह में सम्मिलित होने का फैसला करके कलकत्ते लौट गया।
फैजाबाद के महलों को अंग्रेजी फौजों ने घेर लिया और बेगमात को हुक्म दिया कि आप कैदी हैं, और आप तमाम जेवरात, सोना, चाँदी, जवाहरात दे दीजिए।
जब उन्होंने इन्कार किया, तो बाहर की रसद बन्द कर दी गई, और वे
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