पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/१३९

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टुकड़ा छोड़कर नाम के पीछे खाँ लगा लिया है।"

जिरह में जब पूछा गया कि तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि तुम्हारा नाम गवाहों में दर्ज है? तब उसने कहा-"महाराज ने मुझसे खुद जिक्र किया था कि हमने तुम्हारे नाम की मुहर गवाहों में लगा दी है, जरूरत पड़े तो इसके सबूत में तुम्हें गवाही देनी पड़ेगी। पर मैंने झूठी गवाही से साफ इंकार कर दिया था। अल्ला-अल्ला! भला मैं झूठी गवाही दे सकता था?"

हुसैनअली, ख्वाजा पैट्रिक और सदरुद्दीन ने भी उसकी बात की पुष्टि की। दस्तावेज पर अब्दुल कमालुद्दीन, शिलावत सिंह और माधवराव के दस्तखत थे। कमालुद्दीन की गवाही तो हो चुकी, बाकी दोनों मर चुके थे। शिलावतसिंह के दस्तखत पहचानने को राजा नवकृष्ण आये थे। ये कायस्थ थे। इन्होंने शपथपूर्वक कहा कि ये शिलावतसिंह के दस्तखत नहीं हैं।

इतनी साक्षी होने पर भी मामला जोरदार नहीं हुआ। वादी मोहन-प्रसाद नौ बार और उसका गुमाश्ता कृष्ण जीवनदास चौबीस बार गवाहों के कटहरे में खड़े किये गये। बार-बार जिरह किये जाने पर कृष्णजीवन ने झुंझलाकर कहा-"पद्ममोहनदास के हाथ का लिखा एक इकरारनामा बुलाकीदास ने स्वयं लिखा था, उसमें बुलाकीदास ने महाराज के १७६५ में ४८०२१ रुपये के एक तमस्सुक की बाबत साफ लिखा था।"

कृष्णजीवन के इस इजहार से कोर्ट के जजों और हेस्टिग्स के चेहरों का रंग फख हो गया। पर इम्पे साहब ने गम्भीरता से कहा-"कृष्णजीवन ने अब तक जो गवाही दी थी, वह करारेपन से दी थी, पर इस इकरारनामे की बात कहती बार उसका कण्ठ अवरुद्ध हुआ है। निस्सन्देह पद्ममोहन ने महाराज नन्दकुमार की साजिश से एक इकरारनामा तैयार कर लिया था।"

उधर कान्त पोद्दार, मुंशी नवकृष्ण; गंगा गोविंदसिंह, राजा राजवल्लभ और स्वयं हेस्टिग्स साहब नए-नए साक्षी तैयार कर रहे थे। और किसी तरह काम बनता न देखकर, उन्होंने आजिमअली को गवाह के कटहरे में लाकर खड़ा किया।

आजिमअली नमक की कोठी के एजेण्ट एक अंग्रेज का खानसामा था। क्लाइव की प्रतिष्ठित सभा के सभ्य आवश्यकता होने पर इसे सरकारी गवाह बनाया करते थे, क्योंकि उस समय सरकारी वकील नहीं होता था।

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