आजिमअली-इसके बाद चैतन्य बाबू से महाराज ने कहा कि जहाँ मुहर लगाई है, उसके पास ही अब्दुल कमालुद्दीन का नाम भी लिख दो।
दूसरा जज-कहे जाओ।
आजिमअली-चैतन्य बाबू ने कमालुद्दीन का नाम लिख दिया।
नीसरा जज-क्या तुम पढ़-लिख सकते हो?
आजिमअली-हुजूर, अब तो आँखों से दिखाई ही कम देता है, पर आगे फारसी पढ़-लिख सकता था।
सर इम्पे-आगे बोलो।
आजिमअली-हुजूर, इसके बाद उसी कागज पर महाराज ने शिलावत-सिंह और माधवराव के नाम भी गवाहों में लिख दिये।
इस इजहार से घबराकर चैतन्यबाबू ने इशारे से एक हजार रुपये का इशारा किया। तब आजिम ने भी इशारे ही से कहा-घबराओ मत, सब पर पानी फेरे देता हूँ। उधर जज और फरियादी के वकील अधीर होकर-"गो ऑन, गो ऑन" कहने लगे।
आजिमअली-सब काम खत्म होने पर महाराज उसे पढ़ने लगे।
जजों ने आनन्दित होकर कहा-अच्छा-अच्छा, फिर क्या हुआ?
आजिमअली-बस पढ़कर महाराज ने उसे अपने बक्स में रख लिया।
तभी हमने सुना कि बुलाकीदास ने महाराज को तमस्मुक लिख दिया है।
सब जज-(एक साथ) फिर! फिर!!
आजिमअली-हुजूर, बस इसके बाद ही घर के भीतर मुर्गी बोली और मेरी नींद टूट गई। मेरी छोटी स्त्री ने कहा-मियाँ! आज क्या बिस्तर से नहीं उठोगे? देखो, कितनी धूप चढ़ गई है।
यह सुनते ही द्विभाषिए ईलिएट साहब ने आजिमअली के मुंह की ओर देखा। सहसा उनके मुख से निकल पड़ा-आह!
इधर तो इम्पे साहब ने द्विभाषिए से अन्तिम बात समझाने को कहा, और उधर गवाह से कहा-'गो ऑन'।
आजिमअली-हुजूर, इसके बाद मैंने अपनी छोटी औरत से कहा-मीर की लड़की, मैंने ख्वाब में देखा है कि मैं महाराज नन्दकुमार के मकान पर गया हूँ और वे बुलाकीदास के नाम से एक जाली दस्तावेज बना रहे हैं।
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