दिनों फ्रान्स से युद्ध छिड़ने के कारण अंग्रेजों का बल क्षीण हो रहा था, इस लिए वे कुछ निश्चय न कर सके।
उधर पालताबन्दर में अंग्रेज चुपचाप नहीं बैठे थे। यदि नवाब पालता-बन्दर तक बढ़ा चला आता, तो अंग्रेजों को चोरों की तरह भी भागने का अवसर न मिलता। पर उनका उद्देश्य केवल उनके दुष्ट व्यवहार का दण्ड देना ही था। अनेक बंगाली उन दुर्दिनों में भी लुक-छिपकर उनकी सहायता कर रहे थे। औरों की तो बात अलग रही-स्वयं अमीचन्द, जिसका अंग्रेजों ने सर्वनाश किया था, और जो इन्हीं की कृपा से शोक-ग्रस्त और मर्म-पीड़ित हो, पथ का भिखारी बन चुका था, वह भी नवाब के दरबार में उनके उत्थान के लिये बहुत-कुछ अनुनय-विनय कर रहा था। उसने एक गुप्त चिट्ठी अंग्रेजों को लिखी, जिसका आशय था-
"सदा की भाँति आज भी मैं उस भाव से आप लोगों का भला चाहता हूँ। यदि आप ख्वाजा वाजिद, जगतसेठ या राजा मानिकचन्द से गुप्त पत्र-व्यवहार करना चाहें, तो मैं आपके पत्र उनके पास पहुंचाकर जवाब मँगा दूंगा।"
इस पत्र से अंग्रेजों को साहस हुआ। शीघ्र ही मानिकचन्द की कृपा- दृष्टि उन पर हुई। उनके लिये बाजार खोल दिया गया, और तरह-तरह की नम्र विनतियों से नवाब के दरबार में व्यापार करने के आज्ञापत्र के साथ प्रार्थना-पत्र जाने लगे, और उनके सफल होने की भी कुछ-कुछ आशा होने लगी।
हेस्टिग्स ने पालता की केम्बल नामक एक अंग्रेज की विधवा तरुणी से प्रेम-प्रसंग उपस्थित होने पर विवाह कर लिया। अब हेस्टिग्स ने अपनी योग्यता और कार्य-निपुणता में ख्याति प्राप्त कर ली थी और वह एक चतुर, बुद्धिमान और कुशल सैनिक समझा जाने लगा था। उसने गवर्नर ड्रेक को कुछ ऐसी गुप्त सूचनाएँ, सुझाव और सहायता दी कि उसे अपना विश्वस्त सहायक समझने लगे।
कासिम बाजार से हेस्टिग्स ने लिखा- "मुर्शिदाबाद में बड़ी गड़बड़ी मची है। पूनिया के नवाब शौकतजंग ने दिल्ली के बादशाह से बंगाल, बिहार और उड़ीसा की नवाबी की सनद प्राप्त कर ली है। वह शीघ्र ही
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