पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/५७

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की कठपुतली बन गये हैं। इलाहाबाद और कड़ा के जिले पचास लाख रुपये में अवध के नवाब शुजाउद्दौला के हाथ बेच दिए गए। इतना सब करके भी कम्पनी के डाइरेक्टर और अधिक धन की माँग कर रहे थे।


सात

जिस समय दिल्ली पर शाहआलम का अधिकार था, तब मद्रास की बस्ती अंग्रेजों के अधिकार में थी, और यही उस समय उनके भारतीय व्यापार का मुख्य केन्द्र था। डूप्ले ने मद्रास अंग्रेजों से छीन लेने का विचार किया। दोस्तअली खाँ का उत्तराधिकारी अनवरुद्दीन इस समय करनाटक का नवाब था, अंग्रेजों के विरुद्ध डूप्ले ने नवाब के खूब कान भरे। लाबूरदौने नामक एक फ्रांसीसी के अधीन कुछ जलसेना मद्रास विजय करने के लिए भेजी और नवाब को उसने यह समझाया कि अंग्रेजों को मद्रास से निकालकर नगर उनके हवाले कर दूँगा। लावूरदौने ने मद्रास विजय कर लिया,किन्तु इसके साथ ही अंग्रेजों से चालीस हजार पौंड नकद लेकर मद्रास फिर उनके हवाले कर देने का वादा कर लिया। इसके बाद डूप्ले ने अपने वादे के अनुसार मद्रास नवाब के हवाले कर देने की कोई चेष्टा न की और न लाबूरदौने के वादे के अनुसार उसे अंग्रेजों को वापस किया। नवाब को जब इस छल का पता चला, तो वह फौरन सेना लेकर मद्रास की ओर रवाना हुआ। डूप्ले अपनी सेना सहित नवाब को रोकने के लिए बढ़ा। ४ नवम्बर, १७४६ ई० को मद्रास के निकट डूप्ले की सेना और नवाब करनाटक की सेना में संग्राम हुआ। डूप्ले की सेना में भी अधिकतर भारतीय सिपाही ही थे। सेना तथा अपने तोपखाने के बल से डूप्ले ने विजय प्राप्त की। इतिहास में यह पहली विजय थीं जो किसी यूरोपियन ने किसी भारतीय शासक के विरुद्ध प्राप्त की। इससे विदेशियों के हौसले और भी अधिक बढ़ गए।

फ्रांसीसी, अंग्रेजों तथा नवाब-करनाटक दोनों को धोखा दे चुके थे, इसलिए ये दोनों अब फ्रांसीसियों के विरुद्ध मिल गए। सन् १७४८ ई० में अंग्रेजी सेना ने पांडिचेरी पर हमला किया, किन्तु डूप्ले की सेना ने इस बार

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