कलकत्ते का विलियम फोर्ट ईस्ट इंडिया कम्पनी के व्यापार की कोठी थी। फोर्ट विलियम के अन्दर सुन्दर उद्यान, तालाब, अस्पताल, गिर्जाघर और परामर्श भवन भी थे। प्रति रविवार को कम्पनी के कर्मचारी गिर्जाघर में आकर प्रार्थना करते और पादरी का उपदेश सुनते थे। वहाँ दो सौ व्यक्ति रहते थे। इसके जिन दो कमरों में बैठकर कम्पनी के गुमाश्ते काम करते थे, वह कच्ची ईंटों से बने थे।
अंग्रेज और फ्रेंच दोनों जातियाँ भारत में व्यापार बढ़ाने और बसने के लिए प्रयत्नशील थीं। फ्रेंच गवर्नर ड्यूपले अपने देश की हित-साधना के लिए सामरिक मार्ग भी अपनाते थे। वारेन से प्रथम क्लाइव ने भारत पहुँचकर कम्पनी के हित में सामरिक मार्ग को तीव्रता से कार्यान्वित किया, जिसके कारण फ्रेंच और अंग्रेज दोनों विदेशी जातियाँ अपने व्यापार और स्वामित्व के लिए युद्धप्रिय होती गईं। वारेन के आगमन के समय भारत के दक्षिण प्रान्त करनाटक में उत्तराधिकार का झगड़ा चल रहा था। क्लाइव ने निपुण योद्धा बनकर फ्रांसीसियों की आशा नष्ट कर दी थी। परन्तु दक्षिण के इन झगड़ों का प्रभाव बंगाल तक नहीं पहुँचा था। बंगाल में बसने वाले अंग्रेज और फ्रांसीसी व्यापारी परस्पर में मित्रभाव से व्यवहार करते थे। इन व्यापारियों का मुख्य विषय कम्पनी की कोठियों के बहीखाते तथा माल के बीजक थे। कलकत्ते की कोठियों का लेन-देन मध्याह्न तक होता था। मध्याह्न के बाद कम्पनी के कर्मचारी एकत्र होकर भोजन करते थे। भोजन करके कुछ लोग आराम करते, कुछ विचार-विनिमय करते। संध्या होने पर कोठियों से निकलकर बाहर घूमते थे। नौकाविहार, पालकी-पीनसों में बैठकर बाजारहाट घूमना, दो घोड़े अथवा चार घोड़ों की बग्घियाँ सजाकर उन पर अपनी प्रेयसी सहित नगर-भ्रमण करना उनका सांध्य-मनोरंजन होता था। इनमें कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते थे जो कम्पनी के कर्मचारी होने पर भी अपना पृथक् व्यापार करके मालामाल हो रहे थे। ऐसे धनी व्यापारी सांध्य-भ्रमण से लौटकर नाचरंग और बढ़िया रात्रि-भोजों का भी आयोजन करते रहते थे। कभी-कभी मद्यपान से उन्मत्त होकर उपद्रव भी कर बैठते थे।
वारेन हेस्टिंग्स इन सब आमोद-प्रमोद में रुचि नहीं लेता था। कोठी
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