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पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/९८

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और चार हजार कड़ाबीनी रवाने किए। रुहेलों ने प्रथम तो बहुत-कुछ लिखा-पढ़ी की, पर अन्त में हारकर युद्ध की तैयारियाँ की, और हाफिज रहमत-खाँ चालीस हजार सेना लेकर अवध के नवाब और अंग्रेजों की सम्मिलित सेना की गति रोकने को अग्रसर हुए। कर्नल चैम्पियन के पास तीन ब्रिगेड अंग्रेजी सेना और चार हजार कड़ाबीनी नवाबी सेना थी। २३ अप्रैल १७७४ को बाबुल-नाले पर घोर-युद्ध हुआ, और रुहेलों की वीरता से इस संयुक्त सेना के छक्के छूट गये। पर भारत से मुसलमानों का भाग्य-चक्र तेजी से फिर रहा था। अगले दिन हाफिज रहमतखाँ युद्ध में मारा गया, और पूर्वी सेनाओं के दस्तूर के अनुसार उसके मरते ही सेना का उत्साह भंग हो गया, और वह भाग चली। रुहेलों का अस्तित्व मिट गया।

नवाब की फौज ने भागते रुहेलों को मारने और लूटने में बड़ी फुर्ती दिखाई। एक लाख से अधिक रुहेले अंग्रेजों के आतंक से भयभीत होकर अपने सुख-निवासों को छोड़-छोड़कर विकट जंगलों में भाग गये।

नवाब ने फसल उजाड़ दी, कुछ घोड़ों से कुचलवा दी। नगर-गाँवों में आग लगवा दी। क्या मनुष्य, क्या स्त्री, क्या बालक, या तो कत्ल कर दिए गये, या अंग-भंग करके तड़पते छोड़ दिए गये, अथवा गुलाम बनाकर बेच दिए गये। रुहेले सरदारों की कुल-महिलाओं और कुमारी कन्याओं का अत्यन्त पाशविक ढंग से सतीत्व नष्ट किया गया। वे दाने-दाने के लिए दर-दर भीख मांगने लगीं। मुन्शी बेगम के अंगूठी छल्ले तक उतरवा लिए गए। महबूवखाँ की लड़की पर नवाब ने पाशविक अत्याचार किया, जिससे उसने विष खाकर आत्मघात कर लिया। डेढ़ करोड़ रुपये का माल लूटा गया। अस्सी लाख वार्षिक आय की रियासत नवाब के हाथ लगी। नवाब ने रुहेले सरदारों को पहले तो अभयदान दिया, बाद में विश्वासघात करके उन्हें कत्ल करा डाला। यन्त्रणाएँ भुगतने के लिए प्रसिद्ध रुहेले सरदार महबू- बुल्लाखाँ और फिदाउल्लाखां के परिवार वाले फैजाबाद भेज दिए गए।

इस युद्ध में हेस्टिग्स को भारी आर्थिक लाभ हुआ। इस तीन ब्रिगेड अंग्रेजी सेना का पूरे वर्ष भर का खर्च साढ़े सैंतीस लाख रुपया वसूल किया तथा साढ़े सढ़शठ लाख रुपये वार्षिक नवाब ने कम्पनी को और दिए। एक करोड़ रुपया नकद कम्पनी के खजाने के लिए भी दिया गया।

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