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सीता
[ १ ]
आजकल जिस स्थान का नाम तिरहुत (तीरभुक्ति) है वह, पहले समय में, मिथिला या विदेह नाम से पुकारा जाता था। वहाँ सीरध्वज और कुशध्वज नाम के दो राजकुमारों ने जन्म लिया। जेठे भाई सीरध्वज राजसिंहासन पर बैठकर, पुत्र की भाँति, प्रजा का पालन करने लगे। राज-पाट के साथ-साथ उनके चरित्र और हृदय की उन्नति भी खूब हुई थी। अधिक धर्म-विश्वास और हृदय की उन्नति से वे राजा होकर भी ऋषियों की बराबरी के हो गये थे। उनके प्रेम-पूर्ण हृदय की ममता पाकर प्रजा खूब प्रसन्न रहती थी। राजा सीरध्वज प्रजा के पिता-समान थे। इससे वे "जनक" के साथ राजर्षि की पदवी पाकर 'राजर्षि जनक'*[१] कहलाते थे।
- ↑ * वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के बाद की २३वीं पीढ़ी। इनके पिता का नाम ह्रस्वरोमा था। विष्णुपुराण ५वाँ अध्याय।