नाचता-कूदता उसके पास आकर निषध देश के राजा महाराज नल के गुण गाने लगा। दमयन्ती ने हंस के मुँह से नल के अलौकिक गुण सुनकर सोचा कि वह भाग्यवान् कौन है। मनुष्य की तो बात ही क्या है, जिस पुरुष का गुण पक्षी तक गाता है वह नररूपी देवता न जाने कौनसी स्वर्गीय महिमा प्रकट करने के लिए पृथिवी पर उपजा है।
दमयन्ती को इस प्रकार अचम्भे में देखकर हंस ने कहा--- "राजकुमारी! अगर तुम मंजूर करो तो मैं अभी निषध देश को जाऊँ।" दमयन्ती मुँह से तो कुछ नहीं बोली, परन्तु उसने जैसा कुछ भाव दिखाया उससे मालूम हुआ कि वह महाराज नल के रूप और गुणों पर मोहित हो गई है।
तब वह हंस वहाँ से नीले आकाश की ओर उड़ा। उसके तालाब से निकलते समय जल ऐसा उछला मानो उसने हंस के दोनों पैर छूकर सिफ़ारिश की हो कि दमयन्ती के मन की बात अवश्य कह देना। हंस प्रसन्न-चित्त से, मधुर शब्द बोलता हुआ, उत्तर को जाने लगा। दमयन्ती उसकी ओर टकटकी लगाये देखती ही रही। इस प्रकार, हंस को दूत बनाकर और सम्मिलन-देवता का स्मरण करके दमयन्ती ने नल के चरणों में अपने-आपको सौंप दिया।
खिलवाड़ और फूल चुनने के कारण सखियाँ दमयन्ती से कुछ दूर हो गई थीं। इससे वे नहीं सुन सकीं कि हंस ने दमयन्ती से क्या कहा, किन्तु हंस को उड़ते, और राजकुमारी को टकटकी लगाये, देखकर उन्हें कुछ अचरज अवश्य हुआ। सखियाँ जब पास आ गईं तब दमयन्ती ने पूछा---"तुम सब इतनी देर तक कहाँ थीं?" एक हँसोड़ सखी ने उत्तर दिया---गोइयाँ! हम सब फूल चुन रही थीं