पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/१८८

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चौथा आख्यान

शैव्या

[ १ ]

अाजकल का अवधप्रान्त पहले कोशल कहलाता था। पवित्र जलवाली सरयू के किनारे कोशल की राजधानी अयोध्या नगरी थी। अयोध्या के भवन आकाश को चूमते थे। उस धन-जन से भरी-पूरी अयोध्या में महाराज हरिश्चन्द्र राज्य करते थे। सोमदत्त राजा की बेटी शैव्या उनकी रानी थी।

शैव्या रूप में जैसी बेजोड़ थी वैसी ही गुणवती भी थी मानो विधाता ने सारी सुघड़ाई लगाकर शैव्या की देह को बनाया था। शैव्या जैसी रूप-गुणवाली स्त्री को पाकर हरिश्चन्द्र धन्य हुए थे। मतलब यह कि, शैव्या के साथ रहने से एक ओर जैसे महाराज हरिश्चन्द्र को प्रजा के पालने में शौक हुआ था वैसे ही दूसरी ओर हृदय की अच्छी आदतों के खुल जाने से वे एक आदर्श पुरुष हो रहे थे। शूरता को बतलानेवाली उनकी विशाल देह में जैसे वीरता मौजूद थी वैसे ही उनका हृदय भी मनोहरता का खजाना था। महारानी शैव्या राजा के हृदय-सरोवर में खिली हुई कमलिनी की तरह शोभा पाती थी। शैव्या ही हरिश्चन्द्र का शान्ति-सुख, शैव्या ही उनका उत्साह