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भारतवर्ष में इस समय स्त्री-शिक्षा की बड़ी आवश्यकता है। स्त्री-शिक्षा के प्रभाव से देश की जो हानि हो रही है, इस पर लोग पहले ध्यान नहीं देते थे। अब कुछ दिन से लोगों का ध्यान स्त्री-शिक्षा की ओर आकृष्ट हुआ है, और स्त्री-शिक्षा के प्रचार से जो लाभ होगा उसे कुछ-कुछ समझने लगे हैं। ऐसे अवसर में विज्ञवर श्रीनयनचन्द्र मुखोपाध्याय ने यह 'आदर्श महिला' ग्रन्थ वङ्गभाषा में लिखकर, देश का बड़ा उपकार किया है। इसके साथ ही इण्डियन प्रेस के स्वामी श्रीयुक्त बाबू चिन्तामणि घोष इसे हिन्दी-पाठकों के मनोविनोदार्थ, हिन्दी में, प्रकाशित करके विशेष धन्यवाद के भागी हुए हैं। स्त्री-पाठ्य पुस्तकों में यह पुस्तक आदर्श-स्वरूप है। इस पुस्तक के पढ़ने से स्त्रियाँ तो लाभ उठावेंगी ही, किन्तु पुरुष भी विशेष लाभ उठावेंगे। हम प्रतिज्ञापूर्वक कहते हैं कि कैसे ही बुरे मिज़ाज की स्त्री क्यों न हो, जो इस पुस्तक में वर्णित आदर्श स्त्री-रत्नों के जीवनचरितों को एक बार पढ़ेगी या सुनेगी वह अपने निन्दित चरित्र को सुधारने का प्रयत्न अवश्य करेगी। पुरुष के लिए भी ऐसा ही समझिए। हम आशा करते हैं, पढ़े-लिखे स्त्री-पुरुष इस पुस्तक का अवश्य आदर करेंगे और घर-घर में इसके प्रचार का पूरा प्रयत्न करेंगे।
जनार्दन झा