क्या उपाय है। बहुत सोच-विचार के बाद हनुमान एक ही छलाँग, में लङ्का जा पहुँचे। रात में सीता को ढूँढ़ने में सुभीता समझकर वह रात की बाट देखने लगे। जब रात हुई तब हनुमान् घूम-घूमकर सीता को खोजने लगे, किन्तु उन्हें कहीं सीता का पता नहीं मिला। कितने ही प्रमोद-घरों में स्त्रियों को देखा किन्तु कोई स्त्री उस महा-महिमावाली सीता की सी नहीं देख पड़ी।
अन्त को हनुमान ने अशोक वन में जाकर देखा कि एक वृक्ष की डाली पकड़कर एक दुबली-पतली-सी स्त्री उदास-मन से खड़ी है; उसके शरीर से तेज निकल-निकलकर उस घोर अँधरे से ढके हुए वन के अन्धकार को दूर कर रहा है। उस पवित्र स्त्री को देखकर हनुमान् के मुँह से झट माँ शब्द निकल आया और उन्होंने विरह से दुबली उस मातृ-मूर्ति को सुनाकर "रामचन्द्र की जय" शब्द का उच्चारण किया।
सीताजी मन को प्रसन्न करनेवाले राम-नाम को अचानक सुनकर चौंक पड़ीं। उन्होंने सोचा कि मैं जागती हुई सपना देख रही हूँ या यह मेरे सदा आराध्य राम-नाम की आप से आप निकली हुई प्रति-ध्वनि है! इतने में फिर वह, अमृत-समान, मधुर राम-नाम सुन पड़ा; मानो सूखते हुए धान के खेत में जल-धारा पड़ गई। सीता ने डवडवाई हुई आँखों से वृक्ष की डाली की ओर ताका, देखा कि उस वृक्ष की एक शाखा पर एक छोटासा बन्दर बैठा है। उसी के मुँह से राम-नाम निकल रहा है। विरहिणी सीता देवी से भयानक प्रेतपुरी में, मानो शरीरधारी जीव की भेट हुई।
हनुमान् ने डाली से उतरकर प्रणाम करते हुए कहा—आप क्या रामचन्द्र की सहधर्मिणी रघु-कुल-कमलिनी जानकीजी हैं? आप कृपा कर बेखटके मुझे अपना परिचय दीजिए। मैं सीता देवी को