पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२१६

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कर इन्होने नाड़ी-विज्ञान पर भी बहुत जोर दे रखा है ! गौड़बोले का मत है--

“यदि समय के फेर से, राजाश्रय न मिलकर, वैद्यों की मूर्खता और सर्वसाधारण की उपेक्षा से हमार आयुर्वेद मृत्प्राय भी हो जाय तो हो जाय किंतु जब तक हमारे ग्रंथ विधमान रहेंगे वह नष्ट नहीं हो सकता । किंतु भय दो बातों का है। एक नाड़ी-विज्ञान ग्रंथगन्य नहीं। पढ़ने से नहीं आ सकता ! यह अनुभवगम्य है और लगभग नष्ट हो चुका है और दूसरे ओषधि का लाना, जंगल से खोदकर लाना जब गॅवार भीलों के हाथ में है, अपढ़ पंसारी ही उन्हें बेचनेवाले हैं तब मुझे भय हैं कि कहीं उनकी पहचान ही न मारी जाय ।"

बस इसी विचार से उन्होंने उक्त प्रबंध आरंभ कर दिया है । इस उपन्यास-लेखक के मनोराज्य में गौड़बोलेजी को अपने काम में सफलता हुई और उनकी नकल भी होने लगी है। प्रिय पाठक पाठिकाअ को अधिकार है कि वे इन बातों का अनुकरण करें अथवा यों ही चुप्पी साध जायं ।

पंड़ित प्रियानाथ के स्नेहिये में गौड़बाले और दीनबंधु दो ही मुख्य हैं। गौड़बोले मित्र हैं और उनके आश्रित हैं, दीनबंधु उनके उपकारक और निरपेक्ष हैं। अब इतनी अवश्य हो गया है कि कभी पंडित जी उनसे मिलने जाते हैं और कभी वही यहाँ आकर इनसे मिल लिया करते हैं। साल भर में जब तक दो चार बार भेट न हो तब तक दोनों को कल नहीं।