पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/९१

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और बस इसी तरह समझ लीजिए । विलायत को देखे । समान स्वत्व मांगने मैं वहाँ की स्त्रियों ने कितना ऊधम मचा रखा है। वे मकान जला देती हैं, पत्थर फेंकती हैं, हमले करती हैं और न मालूम क्या क्या कर डालती हैं ।"

“वास्तव में ऐसी स्वतंत्रता किसी काम की नहीं परंतु पति की उगुलामी भी अच्छी नहीं है ।"

“हाँ ! ठीक है परंतु हमारे देश में भले घर की नारियाँ पति की गुलाम नहीं होती, उनकी अद्धागिनी होती हैं। जिन जाती में ठहरौंनी के लालच से, रुपया कम पाकर अथवा पति के दुराचार से गाय भैंस का सा बर्ताव स्त्रियों के साथ किया जाता है वह अवश्य निंदनीय है क्योंकि हमारे धर्म-शास्त्रों का ही यह सिद्धति है कि स्त्री पति को और पति स्त्री को प्रसन्न रखें। जिस घर में स्त्रियों का आदर है वहाँ देवता रमण करते हैं, वहाँ कल्याण का अवश्य निवास है। परंतु इससे स्त्रियों की स्वतंत्रता मत समझ बैठना । शरीर में दहना और बाँया हाथ समान है किंतु अनादि काल से जे काम जिसके सिपुई है उसे वही करना चाहिए । जरा एक दिन बायें हाथ से खाना और दहना हाथ पानी लेने के काम में लगा देना, कैसा होगा ? अाप पति के "ब्राइड शूम"साईस न बनाइए और न उसे ‘‘हस्वैड खेतिहर । अपि उसकी अद्धागिनी बनकर उसे जन्म जन्मांतर के लिये साथी बना लीजिए। आप जब उसके नाम से पुकारी जायेंगी तब आप उसकी बेटर हाफ-उतमार्द्ध"हो चुकीं ।