पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/१७३

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छठा परिच्छेद


दिया। शान्ति अच्छी तरह घोड़ेपर आसन जमा, उसे एंड़ लगाती हुई, तीरकी तरह दौड़ा ले चली। चार वर्षतक सन्तानोंके साथ रहकर शान्तिने घुड़सवारी करना अच्छी तरह सीख लिया था। अगर घुड़सवारी नहीं जानती होती तो जीवानन्दके साथ थोड़े ही रह सकती थी! लिण्डलेका पैर टूट गया। वह जहांका-तहां पड़ा रह गया। शान्ति हवासे बातें करती हुई घोड़ेको दौड़ाती चली गयी।

जिस वनमें जीवानन्द छिपे हुए थे, वहीं पहुंचकर शान्तिने जीवानन्दको सबसमाचार सुनाया। जीवानन्दने कहा-“अच्छा, तो मैं अभी जाकर महेन्द्रको होशियार किये देता हूँ। तुम मेलेमें जाकर सत्यानन्दको खबर दो। बस, घोड़ा दौड़ाये चली जाओ, जिसमें प्रभुको तुरन्त समाचार मिल जाय।"

अब तो दोनों व्यक्ति दो तरफको रवाना हो गये। कहना व्यर्थ है कि शान्तिने फिर नवीनानन्दका रूप बना लिया।




छठा परिच्छेद

एडवार्डिस पका अंगरेज था। नाके-नाकेपर उसने अपने आदमी मुकर्रर कर दिये थे। शीघ्र ही उसके पास खबर पहुंची कि उस वैष्णवीने लिण्डलेको घोड़ेसे नीचे गिरा दिया और आप घोड़ा दौड़ाये हुए न जाने किधर भाग गयी। सुनते ही वह बोल उठा-“अरे वह तो पूरी शैतानकी खाला निकली! अभी खीमे उठाओ।"

अब तो चारों तरफ डेरे तम्बुओंके लूटोंपर हथौड़ेकी चोट पड़ने लगी। मेघ-रचित अमरावतीकी तरह वह वस्त्र नगरी बातको बातमें आँखोंकी ओट हो गयी। सारा सामान गाड़ियों पर लादा गया। कुछ मनुष्य घोड़ोंपर और कुछ पैदल चल पड़े।