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पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/२३

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आनन्द मठ


या उनके बिना खा पी लेनेका संवाद पाये, मैं भला कैसे दूध पी सकती हूं।

ब्रह्मचारीने पूछा-"तुम्हारे स्वामी कहां हैं?"

कल्याणी-“यह मुझे नहीं मालूम! वे दूध लाने बाहर चले गये थे। इसी समय डाकू मुझे उठा लाये।” ब्रह्मचारीने एक एक करके कल्याणी और उसके स्वामीका सारा हाल मालूम कर लिया। कल्याणीने अपने स्वामीका नाम नहीं बतलाया, क्योंकि वह उनका नाम मुहसे नहीं निकाल सकती थी, परन्तु ब्रह्मचारी जीने अन्य बातोंसे सब कुछ समझ लिया पूछा क्या तुम्ही महेन्द्रकी स्त्री हो?” कल्याणीने कुछ जवाब नहीं दिया। केवल सिर झुकाये हुए वह आगमें लकड़ी उठाकर डालने लगी। ब्रह्मवारीने कहा-"मेरी बात मानो, दूध पी लो। मैं तुम्हारे स्वामीका समाचार लाने जाता हूं। तुम दूध न पीयोगी मैं जाऊंगा ही नहीं।

कल्याणीने कहा-"थोड़ा-सा पानी मिलेगा?"

ब्रह्मचारीने जलके घड़ेकी ओर इशारा किया। कल्याणीने हाथ फैलाया, ब्रह्मचारीने पानी ढाल दिया। जलसे भरी हुई अंजलि ब्रह्मचारीके पैरोंके पास ले जाकर कल्याणीने कहा “आप इसमें अपनी पदरज दे दीजिये।” ब्रह्मचारीने अपने पैरके अंगूठेसे उस जलको स्पर्श कर दिया। बस, कल्याणी उसे पी गयी और बोली-“मैंने अमृत पान कर लिया, अब और कुछ खाने पीनेको न कहिये। स्वामोका संवाद पाये बिना मुझस कुछ भी ग्रहण नहीं किया जायगा।"

ब्रह्मचारीने कहा-“अच्छा तुम निर्भय होकर इस देवमन्दिर में बैठी रहो-मैं तुम्हारे स्वामीका पता लगाने जाता हूं।"