पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/२८

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आठवां परिच्छेद


रास्तेमें गिर पड़ा। यह देख, तीन चार सिपाहियोंने महेन्द्रको पकड़ लिया और उन्हें घसीटते हुए सेनापति साहबके पास ले गये बोले, इस आदमीने एक सिपाहीका खून कर डाला है। साहब चुरुट पी रहे थे, शराबका भी तेज नशा बढ़ा हुआ था, झट बोल उठे, “सालेको पकड़ ले चलो, इससे शादी कर लेना।" बेचारे सिपाहियोंकी समझमें न आया, कि वे इस बन्दूकधारी डाकूसे किस प्रकार विवाह करेंगे? पर नशा टूटने पर साहबकी मत बदल जायगी और वे हमसे फिर यह न कहेंगे, कि इससे शादी कर लो, यही सोचकर तीन चार सिपाहियोंने रस्सेसे उनके हाथ पर बांध दिये और एक गाड़ीपर लाद दिया। महेन्द्रने देखा कि इतने लोगोंके साथ जोर आज मायश करना बेकार है। लड़ भिड़कर छुटकारा पानेसे ही क्या लाभ है! स्त्री कन्याके शोकसे महेन्द्र इतने कातर हो रहे थे, कि उन्हें जीनेकी इच्छा ही नहीं रह गयी थी। सिपाहियोंने महेन्द्रको भलीभांति गाड़ीके पहियेके पासवाले बांसमें बांध दिया। इसके बाद वे पहलेकी तरह सरकारी खजाना लिये हुए धीरे धीरे आगे बढ़े।




आठवां परिच्छेद।

ब्रह्मचारीकी आज्ञा पा, भवानन्द मृदु स्वरसे हरिनाम लेते हुए उसी चट्टीकी ओर चले, जिलमें महेन्द्रने डेरा किया था। उन्होंने सोचा कि महेन्द्रका पता वहीं जानेसे लग सकता है।

उन दिनों आजकलकी सी सड़कें नहीं थीं। छोटे मोटे शहरोंसे कलकत्ते जाते समय मुसलमान बादशाहों की बनवायी हुई विचित्र सड़कोंसे ही जाना पड़ता था। महेन्द्र भी पदचिह्नसे नगर जाते समय, दक्षिणसे उत्तरकी ओर चले जा रहे थे।