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आर्थिक भूगोल

और यदि भारतवर्ष तथा चीन में कभी उद्योग-धंधों की उन्नति होगी तो केवल इस लिए, कि इन देशों की प्रकृति धनी है।

किसी भी देश की 'प्रकृति" कैसी है, यह वहाँ के भूगोल को जानने से ही जाना जा सकता है। अतएव आर्थिक तथा व्यापारिक भूगोल (Economic Geography) मनुष्य की आर्थिक (Economic) स्थिति तथा उसके निवास स्थान का घनिष्ठ सम्बन्ध बतलाता है। मनुष्य समाज उन्नति तभी कर सकता है कि जब प्रकृति उसे यथेष्ट भोजन तथा वे वस्तुयें प्रदान करे जिनकी मनुष्य को नितान्त आवश्यकता होती है।

सच तो यह है कि मनुष्य की आर्थिक उन्नति का आधार उसके निवास-स्थान की भौगोलिक परिस्थिति (Natural Environments) ही है। किसी देश की पैदावार कैसी होगी, कौन कौन सी फसलें उत्पन्न की जावेंगी, वहाँ कौन कौन से धंधे चल सकेंगे, शक्ति (power) का कितना उपयोग हो सकेगा, मजदूरों की कार्य क्षमता कैसी होगी, व्यापारिक मार्गों की सुविधा होगी या नहीं, इत्यादि सभी बातें किसी देश की भौगोलिक परिस्थिति (Natural Environments) पर ही अवलम्बित हैं। भौगोलिक परिस्थिति के अन्तर्गत धरातल की बनावट, जलवायु, तथा एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश का भौगोलिक सम्बन्ध, इत्यादि सभी बातें आ जाती हैं।

यदि देखा जाय तो मनुष्य की आर्थिक उन्नति का आधार उसके निवास-स्थान की भौगोलिक परिस्थिति ही है। परन्तु यदि थोड़ी देर के लिए यह भी मान लिया जावे कि केवल भौगोलिक परिस्थिति ही किसी देश की आर्थिक अवस्था को निश्चित नहीं करती तब भी यह तो मानना ही होगा कि किसी भी देश के आर्थिक भविष्य को बनाना अथवा बिगाड़ना बहुत कुछ प्रकृति के ही हाथ में रहता है। यदि ऐसी दशा में यह कहा जावे कि प्रकृति मनुष्य की आर्थिक अवस्था को निश्चित करती है तो भूल न होगी।

मनुष्य जाति के विकास की प्रथम सीढ़ियों में तो केवल प्रकृति ही मनुष्य का लालन-पालन करती है। परन्तु आज यंत्र और विज्ञान के युग में जब मनुष्य सोचता है कि उसने प्रकृति पर बहुत कुछ विजय प्राप्त कर ली है तब भी मनुष्य अपनी आर्थिक उन्नति के लिए प्रकृति पर बहुत अधिक अवलम्बित हैं।

आज भी कोई प्रदेश क्या उत्पन्न करेगा वह जलवायु और धरातल की बनावट पर ही निर्भर है। सब कुछ प्रयत्न करने पर भी गन्ना इंगलैंड में और