आर्थिक-भूगोल १-प्रत्येक कारखाने के लिए कच्चा माल चाहिए । कभी कभी कारखाने कच्चा माल उत्पन्न करने वाले स्थान पर ही खोले जाते कच्चा माल हैं, किन्तु अधिकांश कारखाने दूर होते हैं और कच्चा (Raw माल उन तक लाया जाता है। जिन कारखानों के materialj लिए कच्चा माल आसानी से नहीं लाया जा सकता उनको कच्चा माल उत्पन्न करने वाले स्थानों पर ही स्थापित किया जाता है। उदाहरण के लिए शक्कर के कारखाने, दूध और मक्खन के कारखाने, तथा मांस तैयार करने वाले कारखाने, उन्हीं स्थानों पर स्थापित किए जा सकते हैं जहां कच्चा माल उत्पन्न होता है। २- वास्तव में देखा जावे तो शक्ति के साधन का धन्धों के स्थानीय करण ( Localisation ) पर बहुत प्रभाव पड़ता है। शक्ति का साधन पृथ्वी के अधिकांश औद्योगिक केन्द्र कोयलों की खानों (Source of के समीप स्थापित हैं। जिन धन्धों का कच्चा माल बहुत power ) भारी होता है अर्थात् जिसके ले जाने में व्यय अधिक होता है वह तभी उन्नत हो सकता है जब शक्ति (power ) और कच्चा माल समीप ही पाया जावे। उदाहरण के लिए लोहे का धन्धा तथा अन्य ऐसे ही धन्धे तभी सफलता पूर्वक चलते हैं जब कोयला और लोहा एक ही स्थान पर पाया जाता है। फिर भी यदि लोहा अथवा अन्य धातुयें कोयले की खानों के समीप नहीं मिलती हैं तो कच्ची धातुओं को कोयले की खानों के समीप लाकर वहाँ उनका धन्धा खड़ा किया जाता है। शक्ति ( power ) के समीप ही धन्धों को स्थापित करने से कोयले की खानों के समीप बड़े बड़े औद्योगिक केन्द्र स्थापित हो गये हैं। उनकी श्रावादी बहुत धनी होने के कारण वहां रहने के योग्य मकानों की कमी हो गई है तथा अन्य समस्यायें उपस्थित हो गई हैं । जिन धन्धों में शक्ति का इतना अधिक उपयोग नहीं होता वे कोयले की खानों से दूर भी स्थापित किये जा सकते हैं। जैसे-जैसे जल-विद्युत् ( Water power ) का अधिकाधिक उपयोग होता जावेगा वैसे वैसे अन्धों का विकेन्द्रो करण (Decen- tralisation) हो सकेगा । इसका अर्थ यह है जल द्वारा उत्पन्न की हुई सस्ती बिजली को दूर तक पहुंचाया जा सकता है। अतएव बिजली उत्पन्न करने वाले स्थानों पर ही धन्धों को स्थापित करना ज़रूरी नहीं होगा। न्यागरा जनप्रपात के जल से उत्पन्न की जाने वाली बिजली उत्पत्ति स्थान से तीन सौ मील तक ले जाई जाती है और कारखानों इत्यादि में उसका उपयोग होता है। भारतवर्ष में भी सौ मील तक बिजली ले जाकर उसका भिन्न भिन्न कार्या
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