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आर्थिक भूगोल

काम 1 सदा हरे ३६० आर्थिक भूगोल बबूल सूखे प्रदेशों में मिलता है, और स्थानीय उपयोग के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसकी छाल को चमड़ा कमाने के ववूल में भी लाया जाता है। इसका उपयोग मी चमड़े को कमाने में होता है । खैर की लकड़ी से हलद् कत्था और कच (रंग) बनाया जाता है। यह वन उन प्रदेशों में पाये जाते हैं जहाँ वर्षा बहुत अधिक होती है। इन वनों में बहुत प्रकार की लहलहाती हुई वनस्पति दृष्टिगोचर होती है। यह वन पूर्वी हिमालय के वनों रहने वाले वन तथा पश्चिमीय घाट पर पाये जाते हैं। इन वनों में ( Ever Green मुख्य और महत्त्वपूर्ण वृक्ष बास तथा बेंत के हैं । इनके forests ) अतिरिक्त और भी उपयोगी बेलें यहाँ पाई जाती हैं। यह वन सिंध, अधिकांश राजपूताना, बिलोचिस्तान के कुछ भाग में तथा दक्षिण पंजाब में पाये जाते हैं। जहाँ वर्षा २० सूखे प्रदेश के वन इंच से कम होती है वहाँ ये वन पाये जाते हैं। इन वनों में वृक्ष बहुत प्रकार के नहीं पाये जाते । इनमें बबूल और कीकर मुख्य हैं। यह वन अधिकतर समुद्र से निकली हुई भूमि पर ही मिलते हैं । इनकी लकड़ी विशेष उपयोगी नहीं होती । वह केवल ईंधन समुद्र तट के धन के कम ही आती है, सुंदरवन के वन इसी श्रेणी के हैं। यह वन पूर्व में मिलते हैं. भारतवर्ष के वनों में इन बहुमूल्य लकड़ियों के वृक्षों के अतिरिक्त अन्य बहुत सी उपयोगी वस्तुएँ भी पाई जाती हैं जो कि विदेशों को भेजी जाती हैं। अभी इनका पूरा पूरा उपयोग नहीं होता है परन्तु भविष्य में इनके आधार पर बहुत से धंधे पनप सकेंगे। आज भी कतिपय धंधे वनों में पाई जाने वाली वस्तुओं का कच्चे माल के रूप में उपयोग करते हैं। कागज, दियासलाई, चमड़े को कमाना, लाख, कत्था और कच, तेल, गोंद, रंग, औषधियों, मसाले के धंधे बहुत कुछ वनों में मिलने वाली उपयोगी वस्तुओं पर ही निर्मर है । हिमालय के वनों में अधिकतर बहुमूल्य लकड़ी मिलती हैं, किन्तु दक्षिण प्रायद्वीप के वनों में अन्य उपयोगी वनोत्पन्न पदार्थ (Minor products ) अधिक मिलते हैं। -