___३२ आर्थिक भूगोल अधिक वर्षा के कारण बहुत से आवश्यक लवण (Salts) और विशेषकर चूना ( Lime ) बह जाता है । इस प्रकार की मिट्टी में वनस्पति का अंश भी घास के मैदानों की मिट्टी से कम होता है क्योंकि पेड़ों को जड़ें बहुत गहरी होती हैं । अतएव वे मिट्टी को अधिक उपजाऊ नहीं बना पाती, और न जड़ें शीघ्र ही सड़ती हैं, क्योंकि पेड़ों का जीवन अधिक लम्बा होता है। पेड़ से जो पत्तियाँ गिरती हैं वे शीघ्र ही सूख जाती हैं। अतएव वनों की भूमि खेती के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध नहीं होती। लैटेराइट ( Laterite ) मिट्टी वन की ही मिट्टी है। यह खेती के उपयुक्त नहीं है। यह मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है, इस कारण खेती के लिए बहुत उपयुक्त है। घास के मैदानों में न तो अधिक वर्षा ही घास के मैदानों होती है इस कारण मिट्टी के आवश्यक पदार्थ घुलते की मिट्टी नहीं हैं और न इसमें वनस्पति का अंश ही अधिक होता है। मरुभूमि की मिट्टी में वनस्पति का अंश अधिक नहीं होता है परन्तु आवश्यक पदार्थों के बह जाने का तो वहाँ प्रश्न ही मरभूमि की नहीं उठता । अधिकांश मरुभूमि की मिट्टी रेतीली मिट्टी होती है। किन्तु रेतीली मिट्टी में भी पौधे को उत्पन्न करने की शक्ति होती है। यदि पानी मिल सके तो रेतीली मिट्टी पर भी खेती की जा सकती है। दूसरे प्रकार की वह मिट्टी है जिस पर उसकी चट्टान का प्रभाव अधिक है। कुछ चट्टानों की मिट्टी अत्यन्त उपजाऊ होती है तथा कुछ. की फसलों के लिए हानिकारक होती है। दानेदार चट्टानों ( Crystalline) तथा प्रेनाइट Granite) चट्टानों में चूने की कमी होने के कारण उनसे बनी हुई मिट्टी खेती के काम की नहीं होती । ज्वालामुखी के फूटने से जो पिघले हुए पदार्थ निकलते हैं उनसे बनी हुई मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है। चूने के पत्थर (Lime-stone) से बनी हुई मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है। किन्तु यह न समझ लेना चाहिए कि जो मिट्टी हम अपने गांव या प्रान्त में देखते हैं वह वहाँ की चट्टानों से ही बनी है। अधिकतर मिट्टी जहाँ बनी वहाँ से प्रकृति की शक्तियों द्वारा दूसरे स्थान पर लाकर जमा दी गई । मिट्टी को एक स्थान से लाकर दूसरे स्थान पर जमा देने में जल, वायु और बर्फ का मुख्य हाथ रहा है। जो मिट्टी नदियां चट्टानों को तोड़ कर बनाती हैं और बहाकर नीचे मैदानों में बिछा देती हैं उसे गंगवार (Alluv.
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