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पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/९

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बनाने की बात सोच रहे हैं। बनारस, लखनऊ, नागपुर, पटना इत्यादि विश्व- विद्यालयों ने तो हिन्दी को शिक्षा का माध्यम स्वीकार भी कर लिया है। श्रतएव हिन्दी में भिन्न भिन्न विषयों पर शीघ्रता पूर्वक साहित्य उत्पन्न होना चाहिए उसी विचार से प्रेरित होकर लेखक ने इस पुस्तक का निर्माण किया है। पुस्तक लिखते समय तथा उसका संशोधन करते समय लेखक का बराबर यह ध्यान रहा है कि हिन्दी को वह आर्थिक भूगोल पर एक प्रामाणिक पुस्तक दे.। वह अपने प्रयत्न में कहाँ तक सफल हुआ है यह तो विद्वान ही बतला सकेंगे परन्तुः इस संस्करण में बहुत अधिक सुधार. किए हैं कुछ परिच्छेद भी बढ़ाये हैं और मानचित्रों की संख्या भी बढ़ा दी है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक परिच्छेद के अन्त में अभ्यास के प्रश्न दे दिए हैं। मुझे विश्वास है कि पुस्तक की उपयोगिता अब पहले से बहुत बढ़ गई है। ::

देश का विभाजन हो जाने से पाकिस्तान अलग हो गया है। उस कारण

'भारत के प्रार्षिक भूगोल के अतिरिक्त जिसमें सम्पूर्ण भारत का आर्थिक भूगोल दिया गया है पाकिस्तान पर भी एक परिच्छेद बढ़ा दिया है।

अन्त में लेखक आर्थिक तथा व्यापारिक भूगोल के उन 'प्रामाणिक ग्रन्थों

के रचयिताओं के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करना अपना कर्त्तव्य समझता है जिनकी इस पुस्तक के लिखने में सहायता ली गई है। लेखक श्री रामनारायण लाल फर्म के अध्यक्ष का भी कृतज्ञ है जिन्होंने पुस्तक के प्रकाशन का भार लेकर लेखक को प्रकाशन सम्बन्धी कठिनाई से मुक्त कर दिया । ........

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वरेली कालेज
 

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शंकर सहाय सक्सेना .
बरेली
 

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