पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

डाक्टर साहब की घड़ी ३७ मैं घबराकर सीधा उनके घर पहुंचा । एक कोहराम मचा था। भीड़ को पार करके मै सूबेदार साहब के पलग के पास गया । अभी वे होश मे थे । मुझे देखकर टूटते स्वर में उन्होंने कहा "घडी मैने आपकी चुराई थी डाक्टर साहव , परन्तु मेरी इज्जत बचाकर जीवन भर मे जो कुछ मैने आपकी भलाई की थी उसका पूरा बदला आपने चुका दिया। लीजिए मेरे हाथ से अपनी घड़ी ले जाइये। अब मै जिन्दा नही रह सकता। परन्तु आप इस चोर सूवेदार को भूलियेगा नही । और उसे माफ कर देने की कोशिश कीजिएगा। सूबेदार साहब की ऑखे उल्टी-सीधी होने लगी। अब वास्तव में कुछ भी नहीं हो सकता था। मैंने चुपके से घडी जेब में डालली, और सब की नजर बचाकर ऑखे पोंछ ली। कुछ मिनटों में ही सूबेदार ने दम तोड़ा और मै जैसे तैसे उनके घरवालों को दम दिलासा देकर डाक्टरी गम्भीरता बनाये अपने घर आ गया। डाक्टर ने एक गहरी सांस ली और एक बार मित्रों की ओर, और फिर उस घड़ी की ओर देखा। सभी मित्रों की ऑखे गीली थीं। और देर तक किसी के मुंह से आवाज़ नहीं निकली। ३