मुझे जैसे रस की एक बूँद मिली। मैने हँस कर कहा 'आदमी से याॱॱॱॱॱ।'
'अजी औरत से सही, आप जैसी चाहें?'
'मै जैसी चाहूँ? खूब कही, मिस्टर लाल।' और मै बड़े ज़ोर से हँस पड़ा।
झुंझला कर मिस्टर लाल ने कहा 'खुदा के लिये कहिये भी कुछ?'
मेरी सारी संजीदगी जैसे गायब होगई। मैने कहा—फर्ज करो, एक राजकुमारी से, जिसकी अच्छी खासी जायदाद होॱॱॱॱॱ'
लाल ने नोट करते हुए कहा 'उम्र कितनी हो?'
'यही १९ या २० साल अत्यन्त सुन्दरी, खुश-मिजाज, औरॱॱ' मैं फिर अपने को काबू में न रख सका, और जोर से हंस पड़ा।
मिस्टर लाल हँसे नहीं। वे कुछ लिखते हुए बोले—'हाँ,
एक बात बताइये? आपका सर्व-प्रिय विषय क्या है, प्रोफेसर?
'पुरातत्व, इसमें मैने पदक प्राप्त किये हैं।'
"ठीक है, मिस्टर लाल ने एक पत्र लिख डाला। लिख चुकने पर पत्र मुझे दिखाया, उसमें लिखा था—'एक प्रख्यात पुरातत्वविद्भा रतीय विद्वान प्रोफेसर यूरोप की एक ऐसी राजकुमारी से मित्रता किया चाहते हैं, जो खूब धनी, खुश मिजाज, सुन्दरी और मृतुल स्वभाव की हो।' उसने पत्र और संस्था की फीस उसी दिन अमेरिका के शिकागो शहर को भेज की। वह शाम, एक मजे की दिलचस्प शाम गुजर गई।
(२)
कोई डेढ़ महीने बाद शिकागो से एक पत्र आया। पत्र मे मुझे संस्था का सभ्य बनने के लिए मुबारकबादी दी गई थी।