पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/६६

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-- चिठ्ठी की दोस्ती ६५ मुझे जैसे रस की एक बूंद गिली । मैने हंस कर कहा 'आदमी से या 'अजी औरत से सही, आप जैसी चाहें ।' 'मै जैसी चाहूँ ? खव कही, मिस्टर लाल । और मै बडे जोर से हँस पड़ा। मुंझला कर मिस्टर लाल ने कहा 'खुदा के लिये कहिये भी कुछ ?' मेरी सारी संजीदिगी जैसे गायब होगई । मैने कहा-फर्ज करो, एक राजकुमारी से, जिसकी अच्छी खासी जायदाद हो लाल ने नोट करते हुए कहा 'उम्र कितनी हो ?' 'यही १६ या २० साल, अत्यन्त सुन्दरी, खुश-मिजाज, और · ' मैं फिर अपने को काबू में न रख सका, और जोर से हंस पड़ा। मिस्टर लाल हॅसे नहीं । वे कुछ लिखते हुए बोले-'हॉ, एक बात बताइये ? आपका सर्व-प्रिय विपय क्या है, प्रोफेसर 'पुरातत्व, इसमें मैने पदक प्राप्त किये हैं।' "ठीक है, मिस्टर लाल ने एक पत्र लिख डाला। लिख चुकने पर पत्र मुझे दिखाया, उसमें लिखा था-'एक प्रख्यात पुरातत्वविद् भारतीय विद्वान प्रोफेसर यूरोप की एक ऐसी राजकुमारी से मित्रता किया चाहते हैं, जो खूबधनी, खुश मिजाज, सुन्दरी और मृतुल स्वभाव की हो।' उसने पत्र और सस्था की फीस उसी दिन अमेरिका के शिकागो शहर को भेज की । वह शाम, एक मजे की दिलचस्प शाम गुजर गई । (२) कोई डेढ़ महीने बाद शिकागो से एक पत्र आया। पत्र मे मुझे सस्था का सभ्य बनने के लिए मुबारकबादी दी गई थी। ,