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रानी केतकी की कहानी

तो हमें तुम्हें कोई न देखेगा और हम तुम सबको देखेंगी। पर ऐसी हम कहाँ जी चली हैं। जो बिन साथ, जोबन लिए, बन-बन में पड़ी भटका करे और हिरनों को लोगों पर दोनों हाथ डालकर लटका करें, और जिसके लिये यह सब कुछ है, सो वह कहाँ? और होय तो क्या जाने जो यह रानी केतकी है और यह मदनबान निगोड़ी नोची खसोटी उजड़ी उनकी सहेली है। चूल्हे और भाड़ में जाय यह चाहत जिसके लिए आपको माँ बाप का राज-पाट सुख नींद लाज छोड़कर नदियों के कछारों में फिरना पड़े, सो भी बेडौल। जो वह अपने रूप में होते तो भला थोड़ा बहुत आसरा था। ना जी यह तो हमसे न हो सकेगा। जो महाराज जगतपरकाल और महारानी कामलता का हम जान-बूझकर घर उजाड़े और इनको जो इकलौती लाडली बेटी है, उसको भगा ले जावें और जहाँ तहाँ उसे भटकावें और बनासपत्ती खिलावें और अपने चोंड़े को हिलायें। जब तुम्हारे और उसके माँ-बाप में लड़ाई हो रही थी और उनने उस मालिन के हाथ तुम्हें लिख भेजा था जो मुझे अपने पास बुला लो, महाराजों को आपस में लड़ने दो, जो होनी हो सो हो; हम तुम मिलके किसी देश को निकल चलें, उस दिन न समझीं। तब तो वह ताव भाव दिखाया। अब जो वह कुँवर उभान और उसके माँ-बाप तीनों जी हिरनी हिरन बन गए। क्या जाने किधर होंगे। उनके ध्यान पर इतनी कर वैठिए जो किसी ने तुम्हारे घराने में न की अच्छी नहीं। इस बात पर पानी डाल दो; नहीं तो बहुत पछताओगी और अपना किया पाओगी। मुझसे कुछ न हो सकेगा। तुम्हारी जो कुछ अच्छी बात होती, तो मेरे मुँह से जीते जी न निकलती। पर यह बात मेरे पेट में नहीं पच सकती। तुम अभी अल्हण हो। तुमने अभी कुछ देखा नहीं। जो ऐसी बात पर सचमुच ढलाव देखूँगी तो तुम्हारे