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रानी केतकी की कहानी
दोहरा
घर बसा जिस रात उन्हों का तब मदनबान उस घड़ी।
कह गई दूल्हा दुल्हन से ऐसी सौ बातें कड़ी॥
जी लगाकर केवड़े से केतको का जी खिला।
सच है इन दोनों जियों को अब किसी की क्या पड़ी॥
क्या न आई लाज कुछ अपने पराए की अजी।
थी अभी उस बात की ऐसो भला क्या हड़बड़ी॥
मुसकरा के तब दुल्हन ने अपने घूँघट से कहा।
मोगरा सा हो कोई खोले जो तेरी गुलबड़ी॥
जी में आता है तेरे होठों को मलवा लूँ अभी।
बल वे ऐ रंडी तेरे दाँतों की मिस्सी की धड़ी॥