पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/२३

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दुसरा खण्ड

सन १७७८ में पेशवा के मंत्रियों में यानी अहंलकारों में १७७८ ई० फूटपड़ी। नान्हा फडनवीस ने तो पेशवा की तरफ़ रह कर सेंधिया से मदद ली और बाबू सखाराम ने रघुनाथराव की तरफ हो कर अंगरेज़ों से मदद मांगी। जब अंगरेज़ी फौज से पूना कुल आठ कोस रह गया। कर्नल इजर्टन और कर्नल क़ोबर्न उसके अफ़सरों ने तोपें तालाब में डाल कर फ़ौज को पीछे हटने का हुक्म दिया। और जब दूसरे दिन वरगांव में पेशवा की फ़ौज ने आ घेरा। सालसिट पेशवा की और भङौच सेंथिया को दे कर कम्पनी की तरफ़ से अहदनामा लिख दिया। कोर्ट आफ़ डाइरेकृर्स ने दोनों अफसरों को इस क़सूर में मोकू क किया बम्बई के गवर्नर ने उस अ़हद नामे को जो उन्होंने वरगांव में लिखा था बिल्कुल नामंजूर किया और गवर्नर जेनरल ने भी यही मुनासिब समझा। क्योंकि उन अफसरोंने अ़हदनामा लिखतेवक्त यह भी साफ जाहिर करदिया था किहमको अ़हदनामा लिखनेका परा इस्खतिम्रार हासिल नहीं है निदान इसी बात पर फिर लड़ाई शुरू हुई। उस अ़ंगरेज़ी फ़ौजने जो जेनरल गोडार्ड के तहत में. कलकत्ते से मदद के लिये बम्बई गई थी अमदाबादमें दखल कर लिया और सेंधिया और हुलकर ने उससे ऐसी शिकस्त आयी कि अपना सारा डेराडंडा अंगरेज़ी बहादुरों के लियेछोड़ १७८०० ई० आगे कुछ न बन आयो।

मोहद के राना * का कम्पनी के साथ अहदनामा हो गया था। अब संधिया उसके इलाके की तरफ़ झुका। तो उसनेभी अंगरेजी से मदद चाही कप्तान पोक्रम ने जो कुछ थोड़ी सी सिपाही लिये जेनरल गोडार्ड की फ़ौज़ से शामिल होने को जाताथा। गवर्नमेंट का हुक्म पा कर तुर्त मरहठों को गोहद के इलाके से मार हटाया और फिर उनका लहार का क़िला फतह करता हुआ ग्वालियर का किला जा घेरा। यह क़िला मज़बूती में मशहूर हे खड़े पहाड़ पर बना है। वहां वाले