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पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/३४

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इतिहास तिमिरनाशक


ख़र्च उसी के मुल्क से लिया जावे। इधरतों यह अ़हदनामा लिखा गया। उधर पूना के बाहर हुल्कर से शिकस्त खाकर पेशवा को समुद्र की तरफ़ भागना पड़ा। अंगरेज़ोंने उसे अपने जहाज़ में पनाह दी ओर फिर बहुत सी फौज इकट्ठा करके १८०३ ई० पूना में पहुंचाया। हुल्कर ने सारी सिपाह का मुक़ाबला न किया अपने मुल्क को चला आया। गवर्नर जेनरल ने बहु- तेरा चाहा कि पेशवा की तरह सेंधिया और बराड़ यानी नागपुर के राजा से भी अ़हदनामे हो जावें लेकिन जब देखा कि यह लोग सीधी तरह से न मानेंगे तो अपने भाई जेन- रल विलिज्ली को जो फिर पीछेसे ऐसानामी ईगलिस्तान का कमांडर इनचीफ़ ड्यूक आफ़ वलिंगटन हुआ दखन से और लार्ड लेक कमांडर इनचीफ़ को उत्तर से इन दोनों के मुल्क पर चढ़ाई करने का हुक्मदिया दखन में अहमदनगर सार्कारी फ़ौज के हाथ आजाने से गोदावरी पार सँधिया का बिल्कुल अ़मल जाता रहा। और उसी महीने में भड़ोंच भी सर्कार के कबज़े में आ गया। इधर लार्डलेक ने क़न्नौज से कूच करके अ़लीगढ़ में सेंधिया की फ़ौज को जो पोरन साहिब फरासीसी के तहत में थी शिकस्त देकर दिल्ली की तरफ कदम बढ़ाया। 'पोरन सेंधिया की नौकरी छोड़ कर अंगरेजों की हिमायत में चला आया। दिल्ली में भी सेंधिया को फ़ौज एक फ़ौज रासीसी की तहत में लड़ी। और तीन हज़ार आदमी काम आने के बाद खेत छोड़ भागी। यहाँ लार्डलेक ने नाम के बादशाह अंधे शाहआलमसे मुलाक़ात को वह एक फटे पुराने छोटेसे शामियाने के नीचे बैठा था। लार्ड लेक को बहुत लंबा चौड़ा खिताब इनायत किया और उस बेचारे के पास देने को बाकी क्या रहा था। निदान कर्नल अकटरलोनी साहिब को जिन्हें अक्सर यहां वाले लोनी अख़तर भो कहते हैं कुछ सिपाहियों के साथ दिल्ली में छोड़ कर लार्ड लेक ने आगरा मरहठों से जालिया और फिर लसवारी *मैं पहुंच कर मरहठों को फ़ौज


  • या, लेसवाड़ी आगरे से ७३ मील वायुकोन है।