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इतिहास तिमिरनाशक

हुल्करकी बहादुरी भागने में थी नामही इन का मरहठा है। यानी मारना और हट जाना किसी ने हुल्कर से पूछा था कि आप का राज कहाँ है जिसके छीनने का हम उपाय करें उसने जवाब दिया कि उतनी ज़मीन जिस पर मेरे घोड़े का साया पड़ता है। अगर मक़दूर हो। आओ छीन लो। निदान लेक तो इस आर्जू में था कि किसी तरह उस से दो चार हो तो फिर तमाशा दिखला दे। ओर वह इस के नाम से हवा होता था यहाँ वाले अक्सर अपनी बेवकूफ़ी से इस भगोड़े लुटेरेको बीर समझ कर जीते जी मन्नत की दहेड़ियाँ चढ़ाने लगे थे। एक दिन लेक ने चौबीस घंटे में तीस कोस का धावा मार कर फ़र्रुख़ाबाद के पास इसेजा दबाया। और उस लड़ाई में कम से कम तीन हज़ार आदमी उस के मारे गये लेकिन वह हाथ न लगा डीग की तरफ़भाग गया। डीग भरतपुर को अमल्दारी में है भरतपुरके जाट राजा सूरजमल के बेटे रंजीतसिंह ने हुल्कर को पनाह दी। इस कसूर की उसे भी, सज़ा दीजानी मुनासिब समझी गयी। डीग का क़िला लेक ने फ़तह कर लिया। और जो कुछ उस में था अपनी फौज़ को बांट दिया।

१८०५ ई० तीसरी जनवरी को लेक ने भरतपुर घेरा नवीं को हमला किया लेकिन जब ख़ंदक़ के कनारे पहुंचे। तो मालूम हुआ कि पानी छाती भर गहरा है आदमी बहुत काम आये। इक्कीसवीं को दूसरी तरफ़ से हमला किया लेकिन वहांख़ंदक़ चौड़ी इतनी थी कि पुल जो बना लाये थे छोटा पड़ा। और जब सीढ़ी जोड़ कर बढ़ाना चाहा पानी में गिर पड़ा। इस में भी बहुत आदमी काम आये बाईसवीं को तीसरी तरफ से हमला किया हिंदुस्ता हसिपाही ख़ंदक़ पार हो कर दीवार पर चढ़ गये। लेकिन गोरों ने उस वक्त साथ देनेसे इन्कार किया इस लिये उन्हें भी लौटआना पड़ा ८९४ आदमी खेतरहे। दूसरे दिन लेकने उन गोरों को जिन्होंने उदूलहुक्मी की थी बहुत शर्मदाकिया उन्होंने गै़रतमें आकर बड़ेज़ोर शोरसेचौथा