वफ़ादार जेनरल गोकला मारा गया। और सितारे का राजा
अपने कुनबे समेत सर्कार की हिमायत में चला आया। निदान
पेशवा इस क़दर हैरान और परेशान हुआ कि आख़िर थक
कर और हार मानकर सन् १८१८ में आठलाख सालका पिंशन १८१८ई०
क़बूल कर लिया। और मुल्क से दस्तबर्दार होकर गंगासेवन
के लिये बिठूर में आ रहा चिम्बक को सकार ने गिरफ्तार
करने जनम भर के लिये चनार के किले में कैद कर दिया।
इस पेशवाको उखाड़ पछाड़ में नागपुर के राजा आपासाहिब
की नटखटी सार को बखूबो साबित हो गयी वह पेशवा
ओर पिंडारों से साज़िश गहता था। और पूना को रज़ीउंटी
फूंकने के बाद उसने पेशवा का दिया हुआ खिताब सेनापति
का इतिमार किया था और अपने झंडे पर पेशवाकानिशान
यानी जरीपटका चढ़ा दिया था। किस साहिब रज़ीडंट
अपनी रज़ीडंटी की हिफाज़त का उपाय करने लगे रज़ीउंट
के पास उस वक्त कुल तेरह सौ सिपाही थे ओर राजाकेपास
बीस हज़ार सवार पैदल रज़ीडंटी और शहर के बीच में एक
पहाड़ी सो हे नाम उसका सीताबलदी उसी पर सारीसिपा-
हियों ने मोरचा नमाया। सत्ताईसवीं नवम्बर सन् १८१० को
राजा को फ़ोन ने इनपर हमला किया इस लड़ाई में सकारी
सिपाहियों ने निहायत बहादुरी दिखलायी यहां तक कि
चोथाई कंट गये पर खेत न छोड़ा। राजा को सारी फ़ौज को
जो दलबादल की तरह उमड़ आयीथी तीन तेरह करकेभगा
दिया जब राजा ने यह हाल देखा। कहलाभेजा कि फ़ौजवे
परवानगी लड़ी मुझेबड़ाअफ़सोस हे में सर्कारका तावहूंरजी़डंट
ने जवाब दिया कि अगर तूसच्चाहे फोन छोड़कर हमारे पास
चला श्राराजा रजीडंटी में चला आयारिज़ोडट ने उसेफिर
नये सिर से नागपुरको गद्दीपर बिठाया। लेकिनयहनादानइस
पर भी अपनी हर्कत से बाज़ न पाया। सकीर को दुश्मनोर
पेशवाकोटोस्त समझता रहा।तबनाचार सकार ने उसे नजबंद
पारके इलाहाबाट कोरवाना किया। ओर उसकोजगह नागपुरको