दूसरा हिस्सा
आगे अंग्रेजों को यहां आने के लिये समुद्र का रास्ता
मालूम न था जहाजी तिजारत यहां से ख़ाली ईरान अरब
और मिसर वा चीनवालों के साथ जारी थी यानी ये लोग
अपने जहाज अरब और बंगाल ही की खाड़ी के अंदरचलाया
करने थे। समुद्र को बे हद और अपार समझ कर कभी उन
खाड़ियों को बाहर न जाते थे। और यह तो कब उन का हियाव
हो सकता घा कि हिंद के समुद्र से निकल कर अफ्रीका के
पच्छिम अटलांटिक समुद्र में पहुंचते। लेकिन जो सब चीजें
हिंदुस्तान में जहाज़ों पर मिसर और बसरे को जाती थीं और
फिर वहां से खुशकी और तरी की राह फ़रंगिस्तान में पहुं-
चती थीं उन को तिजारत में इतना फाइदा उठता था कि
फरंगिस्तान वाले वहां की सीधी राह पाने के लिये निहायत
बेचैन थे और हर तरफ़ से उस को ढूंढ़ खोज कर रहे थे।
कोई यह समझ कर कि ज़मीन मोल है हिंदुस्तान आने के
लिये अपना जहाज़ सीधा घच्छम को चलाता और अमेरिका
के किनारे जा अटकता। कोई † यह समझ कर कि पुराने
महाद्वीप के चारों तरफ़ समुद्र के किनारे किनारे उत्तर को ले
जाना ओर वहां उत्तर समुद्र के जमे हुए बर्फ में फंस रहता।
और कोई ‡ यह समझ कर कि अफ्रीका के पुरब हिंदुस्तान है
उस के गिर्द घूमने को निकलता पर आधी दूर जाके मारे
तूफान के पीछे मुड़ आता। और उस जगह का नाम तूफ़ानी
अंतरीक्ष रखता॥ यहां तभ कि सन १४९० में पुर्तगाल के
बादशाह इमानुअलमे वास्कोडिगामा को तीनजहाज लेकर दखन
कोलम्बस्॥ † डच और अंगरेज़॥ ‡ आर्थालोम्यू डिमाजू॥