की तरफ़ से खटका पैदा हुआ। सिंधांवालों ने इस काबू कों
अपना दिली मतलब पूरा करने के लिये बहुत ग़नीमत पाया
रंजीतसिंह की औलाद के बाद गद्दी का हक़ ये अपना सम
झते थे। और शेरसिंह से नाराज़ भी हो रहे थे। एक रोज़
लहनासिंह और अनीतसिंह दोनों सिंधांवाले भाइयों ने अकेले
में महाराज के पास जाकर यह गुल कतरा कि पृथिवीनाथ
हम को ध्यानसिंह ने आप की जान लेने के लिये भेजा है।
ओर इस खिद्मत की य़वज़ साठ लाख रुपये की जागीर देने
का वादा किया है। उसका इरादा है कि आप को मारकर
बलीपसिंह को गद्दी पर बिठावे। और जब तक वह बड़ा
न हो रियासत का काम बेखटके आप किया करें। लेकिन
हमने अपने नमक की शर्त से अदा होने के लिये आप को
इस बेवफा वज़ीर के बद इरादों से अच्छी तरह चित्तादिया
आगे आप मालिक हैं शेरसिंह इस बात के सुनने से
ज़रा भी न घबराया और अपनी तलवार दोनों सिंघां
वाले सर्दारों के सामने रख कर बोला। कि अगर
तुम मेरे मारने की आये हो तो लो मैं अपनी तलवार देता हूं
तुम बेशक मुझको मार डालो मगर यादरक्खो कि जिसतरह
अब वह तुम से मुझे कतलकरवाता है बहुत रोज़नगुज़रेंगे कि
तुम्हें भी कतल करवा डालेगा। सिंधांवालों ने अर्ज़ किया
महाराज हम तो आप को मारने को नहीं बल्कि बचाने को
आये हैं लेकिन ऐसे नमकहराम वज़ीर को तो अब छोड़ना
मुनासिब नहीं ग़रज़ सिंघांवालों ने शेरसिंह से ध्यानसिंह
के मारने की इजाज़त लिखवा ली और वहां से यह कह कर
रुखसत हुए कि अब हम अपनी जागीर पर जाते हैं वहां से
अपने सिपाहियों को लेकर हाजिरी देने के बहाने आपके पास
आवेंगे। आप उस वक़्त ध्यानसिंह को हमारे सिपाहियोंकीमो-
जूदात लेने के लिये हुक्म दीजियेगा हमारे सिपाहीउसको और
रानी चन्दा से रंजीतसिंह का बेटा उस वक्त निरी बालक था