होने लगीं कि फ़ौज का दिल उन से हट गया। हीरासिंह
नेविज़ारत छोड़कर जम्मू की तरफ़ भाग जाने का इरादा किया
ओर फ़ौज की क़वाइद देखने के बहाने से शहर के बाहर
निकला। मगर शाहदरे से पांच सौ कदम भी आगे न बढ़ा
होगा कि सिख सवारों ने पहुंचकर घेर लिया। और यह
तू पंडित जल्ला को हमारे हवाले कर दे लेकिन पंडित
ने अपनी जान बचाने के लिये आगे ही बढ़ने का इशारा किया
ओर सिक्खों का कहना कुछ भी न सुनने दिया। जब दस
बारह कोस निकल गये और दिन करीब दो पहर के आया
क़िस्मत का मारा पंडित जल्ला घोड़े से गिर पड़ा। सिक्खों ने
उसी दम उसे टुकड़े टुकड़े कर डाला। हीरासिंह प्यासकी शिद्वत
से पानी पीने के लिये एक गांव में उतरा सिक्खों ने गांव में
आग लगादी ओर हीरासिंह को उसी जगह कतल किया
हीरासिंह का सिर लाहोरी दवाज़े पर लटकाया गया। और
पंडित मल्ला का सिर तमाम शहर में फिराने के बाद कुत्तों को
खिलाया गया. निदान हीरासिंह के मारे जाने पर दलीप-
सिंह का मामू जवाहिरसिंह वज़ोर हुआ। लेकिन इसी असे
में कुंवर पिशोरासिंह ने बिगड़कर अटक का किला जा दबाया।
जवाहिरसिंहके आदमियों ने पहले तो दम दिलासा देकर उसे
किले से बाहर निकाला। और फिर रात के वक्तमारकर अटक
के दर्या में डुबा दिया। कुंवर पिशोसिंह महाराज रंजीत
सिंह के लड़कों में से था। बहादुरी के बाइस फौज का प्यारा
था। इस के मारे जाने की ख़बर ज़ाहिर होते ही तमाम
सिपाह के दिल में शुस्से की आग भड़क उठी इक्कीसवी सिनम्बर
सन् १८४५ को सारा लशकर दिल्ली दाज़े के नज़दीक आ पड़ा १८४५ ३० निधान जब जवाहिरसिंह ने देखा कि जान नहीं बचती
महाराज दलीपसिंह को गोद में लेकर हाथी पर सवार हुआ
ओर अपनी बहन यानी दलीपसिंह को मा रानी चंदा को भी
जुदा हाथी पर सवार करा कर अपने साथ लिया लेकिन जब
सवारी फोन के मुकाबिल पहुंचो सिपाहियों ने उसके हाथी को
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