पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/८१

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दुसरा खण्ड


थी और नवाब बहावलपुरके यहां से जो कुछ थोड़ीसी फ़ौज पहुंच गयी थी शामिल करके अठारहवीं जून को किनेरी की लड़ाई में और पहली जुलाई को सादूसैन को लड़ाई में मूलराज को मार भगाया। मूलराज मुलतान के किले में बंद हुआ। जे नरल हि्वस लाहौर से सात हज़ार आदमी लेकर लेफ़िनंट डवार्डिस की मदद को पहुंचा और सर्दार शेरसिंह को सिक्योंकी फ़ौजके साथ मुलतान जानेका हुक्म मिला। इस अ़र्से में शेरसिंह का बाप सर्दार चतरसिंह जो हज़ारे की कमान पर था मूलराज की जानिब होगया ओर अटक का किला लेना चाहा। चौदहवी सितम्बरको सर्दार शेरसिंह भी अपने पांच हज़ार सिक्खों के साथ मूलराज को तरफ चला गया। इधर गुरु महाराजसिंह ने कुछ सिक्व जमा करके होशयारपुर के पास लूट मार मचा दी उधर कांगड़े के पास कई छोटे छोटे राजा बाग़ो हो गये गोया तमाम पंजाब में गदर मचा। शेरसिंह की जमाअत बढ़ने लगी लाहौरको कूच किया। काबुलवालों से भी साज़िश होने लगी अमीर दोस्त- मुहम्मदख़ाँ ने आकर पेशावर पर अपना कब्ज़ा किया। और वहांके अजंट मेजर लारंसकी इन मुफ़सिदों ने कै़दकरलिया।

उधर गवर्नर जेनरल बहादुर ने बम्बई से सात हज़ार आदमी को मुलतान रवाना होनेका हुक्मदिया। और अक्तूबर के आखिर तक बंगाले का लशकर भी फ़ीरोज़पुरमें जमा होने लगा। सोलहवीं नवम्बर को चार गोरे को और ग्यारह हिन्दुस्तानी पलटने और तीन गोरे के और दश हिन्दुस्तानी रिसाले और २८ तोपें लेकर कमांडरइनचीफ़ लार्डगफ रावीपार उतरे। बाइसवी को चनाब पर रामनगर में और तीसरी दिसम्बर को शाहदूलहापुर में लड़ाई हुई शेरसिंह ने पीछे हटकर झेलम पर चेलियानवाले में मोरचे जमाये। यहां तेरहवीं जनवरी को बड़ी कड़ी लड़ाई हुई खेत सास्के हाथ रहा। किन चार तोप खोई गयीं और २६५७ आदमी और ८९ अफसरों का नुक़सान हुआ।