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पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/९३

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दुसरा खण्ड


सिर उठाने का अच्छा मौका आया। सर हेनरी लारंस रज़ी- 'डंटो यामी बेलीगारद में अंगरेजों के साथ बंदहुए। कुछ उन में लड़नेवाले थे और कुछ न लड़नेवाले।

बुंदेलखंड के नवाब खां बहादुर खां ने दवाया। मऊ नीमच नसीराबाद की फोजें और हुलकर और संधिया के कटिजेंटों ने भी बलवा मचाया। झांसी की रानी और बांदे के भवाष ने बुंदेलखंड पर कबजा किया। दिल्ली तो गया बलवे का मर्कज़ था जो फौज जहां जिगड़ी सबने सोचा दिल्ली का रस्ता लिया।

जेसा बड़ा बलवा हुआ† वैसाही लार्ड केनिंग भी बड़ा गवर्नर जेनरल था। तुर्त मंदराज और बम्बई से फोजें इधर को एखाना कराई। जो गोरों की पल्टने चीन को जाती थी रास्तेही से सब यहां मगाली। लेकिन सकार का बड़ा सहारा पंजाब था। सरहद होने के संबब और जगहों से वहां गारों को फोन जियादाथी सर जान लारस * को जिन हिन्दुस्तानी पल्टनों को नमकहलाली और बफादारी का भक्षेसा न हुआ तुर्त सब से हथियार रखवा लिया।

कमांडर इमचीफ़ने सातहनार फोज† से आठवीं जूनको दिल्ली की पहाड़ी पर मोरचा जा जमाया। बलवाइयोंका ज़ोर था धीरे धीरे मुहासरा बढ़ा के चौदहवीं सितम्बर को धावा कर दिया। कदम कदमपर, लड़ाई हुई और लहू बहा। यहाँ तक कि उन्नीसवीं को किला भी हाथ आगया और दिल्ली में


  • एक रोज़ शिमला में मुझे कुछ काग़ज़ पढ़ने के लिये बुलाया अब काम होगया खुशीमें आकर फ़र्मानेलगे तू जानता है हम को ये बाफशानी या महते हैं अर्ज लिया हुजूर नहीं बोले जबर्दस्त जाम लारस! इस में किसी बरहका शक यदि कि वह सच मुच ज़बर्दस्त थे।

ज़ियादा इस फौज में गोरे थे और पंजाब से लिये गये थें लेकिन हिंदुस्तानियों में सिरमौर वाली गोरखों की पल्टन ओर गाइड कारने बड़ा नाम पाया।