पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०
इन्दिरा।


जल के भीतर प्रान पियारे,
दीख परे घन श्याम॥
खड़ी में जनुमा तट आली—
डुबकावन लागी जब गगरी,
नजर पच्चो नहिं कोय।
जानि परत छलिया वह जल में॥
बेठि रह्यो तट गोय।
खड़ी मैं जनुमा तट आली—

उसी दिन वहां पर मैंने दो लड़कियों को देखा था जिन्हें। मैं कभी न भूलूंगी। उन मालिकाओं का वयस सात आठ बरस का होगा देखने में वे दोनों अच्छी थीं, तो भी परम सुन्दरी न थीं ि किन्तु सजी थीं अच्छी तरह। इनके कानों में कमल फूल थे और हाथ तथा गले में भी एक एक गहनें थे। फूलों से उनकी चोटी संवारी हुई थी। शृंगारद्वार के फलों से रंगी, दोहरी काली किनारेबाली साड़ियां वे दोनो पहिने हुई थीं। और उनके पैरों में चार चार छड़े थे और कमर को दोनों दो छोटी छोटी कलसियां लिए हुई थीं। उन दोनों ने घाट की सीढ़ियों पर उतरते उतरते जल के ज्वार भाटे का एक गीत गाया। वह गीत मुझे याद है और मीठा लगा था, इसीलिये यहां पर लिखा गया। उन दोनों में एक जनी एक पद गाती थी और दुसरी दुसरा पद। उन दोनों का नाम भी मैंने सुना था कि अमला और निर्मला है। पहिले अमला ने गाया—