पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८६
इन्दिरा

उठ खड़ा हुआ। कोई पंखे के लिये चिल्लाता, कोई जल के लिये कोलाहल करता, कोई दवा के लिये हल्ला मचाता, और कोई डाक्टर डाकार पुकारता था। इसी प्रकार बड़ा कोलाहल मचा। उसी समय हंसती हंसती हारानी आ पहुंची। मैंने उस से पछा―“इतना हल्ला क्यों मचा है?”

हारानी―वही बाबू बेहोश हो गये थे।

मैं―अच्छा, फिर क्या हुआ?

हारानी―अब होश में हैं।

हारानी―पर अभी बहुत सुस्त हो रहे हैं। अपने डेरे पर न जा सकेंगे, सो यहीं पर बड़े कमरे की बग़लवाली कोठरी में सोये हैं।

मैंने समझ लिया कि मेरे न्योते पर उन्होंने यह एक पाखंड फैलाया है। फिर हारानी से कहा―“जब घर के सारे आदमी सो जाय और दीये बुझा दिये जायें तब तुम आइयो।

हारानी ने कहा―अरे! वह मांदे जो हो गये हैं!

मैंने कहा―मांदे नहीं, तेरा सिर! और पांचसौ बीबियों का सिर!!!ज़रा मैं उस दिन का तो पाऊ फिर समझूंगी।

यह सुन हारानी हंसती हुई चली गई। फिर दीयों के बुझने और सब के सो जाने पर वह मुझे साथ ले जाकर उन का सोनेवाला घर दिखला के चली आई। मैं घर के भीतर घुसी तो क्या देखती हूँ कि मेरे प्राणधन वहां पर अकेले ही सोये हुए हैं। वे कुछ भी सुस्त न थे। घर में दो बड़े बड़े लैम्प जल रहे थे पर सब