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पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/९२

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इन्दिरा

बातचीत करना आरम्भ किया। बहुतेरी इधर उधर की बातों के होने पर उन्होंने कहा―“कालीदीधी में तुम्हारा घर सुन कर मुझे अचरज होता है। क्योंकि कालीदीधी में भी ऐसी सुन्दरी जन्मी है यह मैं स्वप्न में भी नहीं जानता था।”

उनकी आंखो की ओर मैं लक्ष्य करती थी। मैंने देखा की वे बड़े अचरज के साथ मुझे निहार रहे हैं उन की बातों के अवाम देते समय मैं सानुनासिक स्वर से बोली, “मैं सुन्दरी नही बन्दर हूँ। मेरे देश में आज की स्त्री ही का सुन्दरता की वही बड़ाई हैं।” इस छल से उनकी बात बढ़ कर मैंने पूछा―“क्या उनका कुछ पत्ता लगा।”

उत्तर― नहीं।―तुम्हें देश से आये कितने दिन हुए?

मैंने कहा―मैं उस घटना के बाद ही देश से आई; तो जान पड़ता है आप ने दूसरा विवाह किया है।

उत्तर―नहीं।

लम्बी चौड़ी बातों में उन्हें जावाब देने की छुट्टी हो रहीं दिखलाई हो। मैं उपबालिका*, अधिसारिका वन कर गई थी-किन्तु मेरे आदर करने की भी उन्हें फुर्सत नहीं थी। वे चकबकाये हुए मेरी ओर देखते ही रह गये और केवल एक बार ही बोले कि―“ऐसा रूप तों में कहीं नहीं देखा।”

सौमिक नहीं आई है, यह सुन कर मुझे बड़ा आन्नद हुआ। मैंने कहा― “आप लोग जैसे मर्यादा में बड़े हैं यह काम भी


*उपयाचिका वह स्त्री है शे परपुरुष के यहां जाकर स्नेह आदि कामन, प्रकाश कर। अनुवादक।