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न्याय से सम्बन्ध

मान लेंगे। यदि कान्ट के कथन के कुछ अर्थ हो सकते हैं तो यही होने चाहियें कि हमको ऐसे नियम के अनुसार आचरण करना चाहिये कि जिस नियम को सारे सहेतुक धर्मवादी सामुदायिक हित के विचार से मान लें।

अच्छी तरह समझाने के लिये सब बातों को फिर दुहराये लेते हैं। 'न्याय' का विचार दो बातों की कल्पना करता है; एक तो आचरण का नियम और दूसरा वह भाव ( Sentiment ) जो इस नियम की अनुमति देता है। आचरण का नियम मनुष्य मात्र के लिये समझा जाना चाहिये और उन के लिये हितकर होना चाहिये। न्याय का भाव इस बात की इच्छा है कि जो लोग आचरण के नियम का उल्लंघन करें उन को दण्ड मिलना चाहिये। इस के साथ २ किसी आदमी या बहुत से आदमियों का भी ध्यान होता है जिन को आचरण का नियम उल्लंघन करने से हानि पहुंचती है और उनके अधिकार कुचले जाते हैं। न्याय का भाव ( Sentiment ) मुझे इस बात की प्राकृतिक इच्छा जान पड़ती है कि उन लोगों को हानि पहुंचाई जावे जो हम को या उन को जिन से हमें सहानुभूति है हानि पहुंचावें। यह इच्छा सब जानवरों में पाई जाती है।

इस समस्या पर विचार करते हुवे मैंने इस बात का वर्णन किया है कि अन्याय होने पर किसी व्यक्ति या कतिपय व्यक्तियों का अधिकार कुचला जाता है। अच्छा तो अधिकार कुचले जाने का क्या अर्थ है? जब हम कहते हैं कि अमुक चीज़ पर अमुक व्यक्ति का अधिकार है तो हमाग आशय होता है कि उस व्यक्ति का समाज पर पूरा दावा है कि समाज उस व्यक्ति को वह चीज़, क़ानून की ताक़त, शिक्षा अथवा लोक-मत के