पहिले ग्रन्थ में मिल ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है कि क़ानून बनाने के लिये राजनीति विशारद् विद्वानों का एक कमीशन रहना चाहिये क्योंकि प्रतिनिधियों की विराट् सभा में कानून बनाने की योग्यता का सर्वथा अभाव होता है। प्रतिनिधि-सभा को कमीशन द्वारा बनाये गये कानूनों के स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार होना चाहिये।
स्त्रियों की स्वाधीनता नामक ग्रन्थ में मिल ने स्त्री जाति की परतन्त्रता का बहुत ही हृदय-विदारक चित्र खींचा है तथा सिद्ध किया है कि स्त्रियां मनुष्यों से शारीरिक, मानसिक आदि किसी भी शक्ति में कम नहीं हैं। मनुष्यों ने अपने स्वार्थ के कारण स्त्रियों को केवल अपने भोग विलास की सामग्री बना रक्खा है। संसार का कल्याण इसी में है कि मनुष्य अपनी स्वार्थपरता छोड़ कर स्त्रियों को समानाधिकार दें। इस पुस्तक से स्त्रियों के स्वाधीनता विषयक आन्दोलन को बड़ी सहायता मिली है।
इस के बाद मिल ने अपने कतिपय पुराने लेखों में कुछ संशोधन, परिवर्तन तथा परिवर्द्धन करके उपयोगिता वाद (Utilitarianism) नामक ग्रन्थ प्रकाशित कराया। मिल के ग्रन्थों में यह ग्रन्थ भी बहुत महत्वपूर्ण है।
इसी बीच में उत्तर अमरीका तथा दक्षिण अमरीका में गुलामों के सम्बन्ध में युद्ध छिड़ गया। मिल तत्काल ही समझ गया कि यह युद्ध राज्यों के बीच में नहीं है वरन् स्वाधीनता तथा गुलामी के बीच में है। इस कारण उस ने उत्तर अमरीका के पक्ष में पत्रों में बहुत से लेख लिखकर प्रकाशित कराये।
कुछ समय के बाद मिल ने हैमिल्टन के तत्व-शास्त्र की परीक्षा (Examination of Hamilton's Philosphy)