आवश्यकता है। वे निस्सन्देह साधारण मनुष्यों की अपेक्षा अधिक कारणों से दुःखी हो सकते हैं। किन्तु ये सब असुविधायें होते हुवे भी वे कभी साधारण विकाश-प्राप्त मनुष्यों की श्रेणी में आना पसन्द न करेंगे। हम उनके ऐसा न करने का चाहे कुछ कारण क्यों न बतावें। चाहे हम उन के ऐसा न करने के कारण उनका घमण्ड बतावें-मनुष्य की उच्चतम तथा नीचतम दोनों प्रकार की भावनाओं के लिये इस शब्द का बेसोचे समझे प्रयोग किया जाता है। चाहे हम इस बात का कारण उनकी स्वातन्त्र्य-प्रियता तथा व्यक्तिगत स्वाधीनता ठहरावें। चाहे हम इसका कारण उनका शक्ति तथा आवेश का प्रेम-जिन दोनों बातों का ऐसा बनना रुचिकर न होने देने में बहुत कुछ भाग है-ठहरावें। किन्तु मान-मर्यादा के विचार को इस बात का कारण बताना अधिक उपयुक्त होगा। मान-मर्यादा का ख्य़ाल थोड़ा बहुत प्रत्येक मनुष्य को होता है। हां! यह बात ठीक है कि सब मनुष्यों को बराबर नहीं होता। अधिक विकाश प्राप्त मनुष्यों को मान मर्यादा का ख्याल अधिक होता है। इस कारण ऐसे मनुष्य कभी भी ऐसी बात की इच्छा नहीं कर सकते जिस से उनकी मान-मर्यादा में बट्टा आने की संभावना हो। यह बात दूसरी है कि किसी कारण विशेष से ऐसे मनुष्य थोड़ी बहुत देर के लिये अपनी मान-मर्यादा का ख्याल भूल जायें। जिन मनुष्यों का विचार है कि उच्च-विकाश प्राप्त मनुष्य ऐसा करने में अपने सुख की कुरबानी करते हैं-अर्थात् उच्च-विकाश प्राप्त मनुष्य और सब बातें बराबर होने पर साधारण मनुष्यों की अपेक्षा अधिक सुखी नहीं हैं-वे लोग सुख तथा तुष्टि के दो बहुत भिन्न २ भावों को गड्ड मड्ड कर देते हैं। यह बात
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