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उपयोगितावाद का अर्थ


मानने ही पर है क्योंकि जहां तक हमें मालूम है निस्सन्देह आचार शास्त्रियों का कोई भी सम्प्रदाय किसी काम को इसी कारण अच्छा या बुरा नहीं ठहराता है कि उसको किसी अच्छे या बुरे आदमी ने किया है। इस बात का कुछ भी ध्यान नहीं रखता है कि उस काम को किसी प्रेम-पात्र, वीर या परोपकारी मनुष्य ने किया है या घृणित, डरपोक या स्वार्थी मनुष्य ने। इन बातों का विचार तो मनुष्यों से सम्बन्ध रखता है, कामों के अच्छा या बुरा होने से नहीं। उपयोगितावाद में कोई ऐसी बात नहीं है जो हमें इस बात के मानने से रोके कि मनुष्य अपने कामों के ठीक या गलत होने ही के कारण रुचिकर या अरुचिकर नहीं होते। तितिक्षावादी (Stoics), जिनको विरोधाभासात्मक भाषा इस्तेमाल करने की लत थी और जो इस प्रकार वे अपना ध्यान नेकी को छोड़कर और सब बातों से हटाना चाहते थे, बड़े शौक़ से कहा करते थे कि जिस के पास नेकी है सब कुछ है। नेक मनुष्य-एकमात्र नेक मनुष्य ही धनी है, सुन्दर है और बादशाह है। किन्तु उपयोगितावाद का सिद्धान्त नेक मनुष्यों के विषय में ऐसी कोई बात नहीं कहता। उपयोगितावादी खूब अच्छी तरह जानते हैं कि नेकी के अतिरिक्त और भी पदार्थ हैं जिन की प्राप्ति की मनुष्य को कामना होनी चाहिये। उपयोगितावादी इन सब पदार्थों का यथा योग्य सम्मान करने के लिये बिल्कुल राजी हैं। वे जानते हैं कि ठीक काम करने वाले मनुष्य का नेक होना आवश्यक नहीं है तथा अन्य प्रशंसनीय गुण होने की वजह से भी मनुष्य बहुधा निर्दोष काम करते हैं। जब उपयोगितावादी इस बात का कोई उदाहरण देखते हैं तो इससे कर्ता संबन्धी निर्याय में हेर फेर कर लेते हैं।