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पृष्ठ:उपयोगितावाद.djvu/८९

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चौथा अध्याय


कम हो जाते यदि वे वस्तुयें, जो प्रारम्भ में उदासीन थीं किन्तु हमारी प्रारम्भिक इच्छाओं की पूर्ति की ओर लेजाने वाली थीं, बाद में स्वयं ही आरम्भिक आनन्दों की अपेक्षा आनन्द के अधिक मूल्यवान् उद्गार-आधिक्य तथा जीवन काल में नित्यता दोनों के विचार से न बन जातीं।

उपयोगितावाद की विभावना के अनुसार नेकी या पुण्य इस प्रकार की अच्छी चीज़ है। प्रारम्भ में नेकी या पुण्य की एकमात्र इस ही कारण कामना थी कि नेकी या पुण्य सुख की ओर लेजाता है तथा विशेषतया दुःख से बचाता है। किन्तु इस प्रकार का सम्बन्ध होने के कारण नेकी स्वयं ही अच्छी समझी जासकतीहै तथा नेकी की भी इतनी ही प्रबल इच्छा हो सकती है जितनी किसी अन्य अच्छी चीज़ की। नेकी में तथा धन, शक्ति तथा ख्याति की लालसा में इतना अन्तर है कि धन आदि की लालसा के कारण मनुष्य अपने समाज को हानि पहुँचा सकता है जैसा कि बहुधा देखने में भी पाया है। किन्तु मनुष्य जितना लाभ समाज को नेकी (Virtue) के निष्काम प्रेम के कारण पहुंचा सकता है, उतना किसी और प्रकार नहीं पहुंचा सकता। इस कारण उपयोगितावाद के आदर्श के अनुसार धन आदि की लालसा उस सीमा तक ठीक है जब तक कि इस प्रकार की लालसा से सार्वजनिक सुख की वृद्धि हो तथा सार्वजनिक हित के मार्ग में रुकावट न पड़े। किन्तु उपयोगितावाद का कहना है कि नेकी की इच्छा जितनी अधिक बढ़ सके उतना ही अच्छा है क्योंकि नेकी की इच्छा सार्वजनिक सुख के लिये सब से अधिक आवश्यक है।