पृष्ठ:उपयोगितावाद.djvu/९

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भूमिका

आधुनिक युग "युक्ति का युग" (Age of Rationalism)" है। प्रत्येक बात के लिये युक्ति माँगी जाती है। इस कारण आचार शास्त्र की भी सहेतुक कसौटी निश्चय करना अत्यन्तावश्यक हो गया है, क्योंकि अब पुरानी पुस्तकों से बचन मात्र उद्घृत करने से ही काम नहीं चलता है।

इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध तत्ववेत्ता स्टुअर्ट मिल ने अपनी संसार-प्रसिद्ध पुस्तक Utilitarianism अर्थात् उपयोगितावाद में इस ही विषय पर विचार किया है। आचार-शास्त्र का मूल अधार क्या होना चाहिये? कोई काम करना ठीक है या नहीं?-यह बात किस प्रकार निश्चित करनी चाहिये। मिल उपयोगितावादी थी। उस का विचार था कि जिस काम से जितने अधिक आदमियों का हित होता है वह उतना ही अधिक अच्छा है। इस सिद्धान्त को इस पुस्तक में बहुत अच्छी तरह प्रमाणित किया गया है। इस पुस्तक के पढ़ने से मालूम होगा कि इस सिद्धान्त की पुष्टि में मिल ने जिन दलीलों या युक्तियों से काम लिया है वे बहुत प्रबल तथा अकाट्य हैं।

इस पुस्तक में पांच अध्याय हैं। पहिले अध्याय में मिल ने इस सिद्धान्त के विषय में कुछ साधारण बातें कहीं हैं। इस अध्याय को मूल पुस्तक की भूमिका समझना चाहिये।