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चही तो न हाँ ? घाट पर पहुच कर देखा तो आशंका सत्य
निकली। मोटर पर कमला और विमला को यैठाल कर घह
घर लाए । वह अपने उपकारी, उस विद्यार्थी को भी न भूले
जिसने उनको स्त्री और कन्या को इवने से बचाया था।
श्रनन्तराम जी के श्राग्रह मे विनोद को भी उनके घर तक
श्राना पड़ा।
विमला कई दिनों तक धीमार रही, और प्राय रोज
विनोद उसे देखने पाता रहा। इसबीच में अनन्तराम ने बिनोद
का सय हात मालम कर लिया और उन्होंने विनोद को सब
प्रकार से विमला के योग्य समझा। उन्होंने ईश्वर को कोटिश
धन्यवाद दिए, जिसने घर बैठे विमला के लिए योग्य पार भेज
दियाथा। पिनाद वसन्तपुरका निवासीथा, और यहां कालेज
में एम. ए. फाइनल में इसी साल धैठने वाला था। परिवार
में पिता को छोड कर और कोई न था। पिता डिप्टी कलेकर,
भोर
घसन्तपुर क प्रसिद्ध रईस थे।
विनोद स्वयं बहुत सुन्दर, स्वस्थ, तेजवान और
मनस्वी नवयुवक था। श्रन्य नवयुवका की तरह उसमें
उच्छृखलता नाम मात्र को न थी।यह विमला को देखने पाता
था अवश्य, पर जब तक अनन्तराम जी स्वयं उसे अपने साथ
तेकर भीतर न जाते वह कमी अन्दर न जाता। उसके इस
व्यवहार और अध्ययनशोलता तथा उसको विद्या और बुद्धि
पर अनन्तराम और उनकी स्त्री दोनो ही मुग्ध थे, और इसी
लिए अपनी प्यारी पुत्री को उन्होंने विनोद को सौंप दिया।
विनोद भी विमला के शील स्वभाष पर मुग्ध था। इसके पहिले
उसने विवाह की तरफ सदा अनिच्छा ही प्रकट की थी।
किन्तु विमला के साथ जो विवाह का प्रस्ताघ हुआ तो उसे
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