पृष्ठ:उपहार.djvu/१२६

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"पर यह यात तो सच है क्योंकि में उसका भाई इ" अखिलेश न किंचित मुस्करा कर कहा फिर वह गभीर हाफर बोले-

"विनोद ! तुम जेसा चाहो। में विमला से मिलने क लिये पहुत उत्सुक भी नहीं है, और यदि तुम चाही तो में यह स्थान ही बदल दू कहीं और चला जाऊं, अभी लौटने को ही कितने दिन हुए हैं? सरविस दूसरी जगह भो तो कर सकता है।"

विनाद घबरा कर बोल उठे-नहीं अखिल तुम यहा से कहीं जायो मत । भाई ! तुम दो साल के बाद ता लौटे हो फिर पिता की यदली यहा की हो गई तो सौभाग्य से ही हम दोनों को फिर से साथ २ रहने का अरसर मिला है। उसे में व्यर्थ ही नहीं जान देना चाहता यहा रह कर क्या तुम विमला से मिलना नुलना कम नहा कर सकने"

अरे भाइ ! तुम जो कुछ यहा सब कर सकता ह पर १२ बज रहे हें जायोसोन भी दोगे या नहीं" अखिल न हसते हुए कहा इसके याद चिनोद तो गए अपने घर, और अपिल अपने बिस्तर पर।

[ ४ ]

पूरा १ महीना बीत गया न अखिलेश श्राये, और न विमला मे उनकी कमी मुलाकात हो हुई। विमला इस बीच कई बार अपनी मां के घर भी जा चुकी थी, किन्तु अखिलेश से घह वहा भी मित न सकी। यह हृदय स तो अखिलेश से मिलना चाहती थी पर मुह से घुछ फहन का साहस न होता था। एक दिन वह मा के घर जा रही थी रास्ते में उसे अखिलेश नहीं जाते हुए दिखे, विमला का हृदय बडी जोर से धड़कने लगा । एक